रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धांत

रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धांत उसका सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक सिद्धांत है। कुछ विचारक इस सिद्धांत को सबसे अधिक खतरनाक मानते हैं जबकि अन्य विचारकों की राय में सामान्य इच्छा का सिद्धांत लोकतन्त्र तथा राजनीति दर्शन की आधारशिला है। रूसो की मुख्य समस्या यह है कि किस प्रकार सामाजिक सत्ता और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता में समन्वय स्थापित किया जाए और किस प्रकार स्वतन्त्रता रूपी अण्डे को तोड़े बिना राज्य रूपी आमलेट को तैयार किया जाए। रूसो ने सामान्य इच्छा के सिद्धान्त द्वारा इस समस्या के समाधान का प्रयास किया है।

रूसो द्वारा प्रतिपादित सामाजिक समझौता सिद्धान्त के अनुसार आदिम मनुष्य पशु के समान, निर्दोष तथा स्वाभाविक रूप से अच्छा था। प्राकृतिक अवस्था आदर्श अवस्था थी, लेकिन कृषि के आविष्कार के कारण सम्पत्ति और ‘मेरे तेरे’ की भावना का विकास हुआ जिससे प्राकृतिक शान्तिमय जीवन नष्ट हो गया तथा युद्ध और विनाश का वातावरण उत्पन्न हुआ। इस असहनीय स्थिति से छुटकारा पाने के लिए सभी व्यक्ति एक स्थान पर एकत्रित हुए और उनके द्वारा अपने सम्पूर्ण अधिकारों का समर्पण किया गया। समझौते के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण समाज की एक सामान्य इच्छा उत्पन्न होती है और सभी व्यक्ति इस सामान्य इच्छा के अन्तर्गत रहते हुए कार्यरत रहते हैं। दूसरे शब्दों में, रूसो सामाजिक समझौते द्वारा निर्मित राज्य को ‘सामान्य इच्छा’ (General Will) कहता है।

सामान्य इच्छा क्या है?

 सामान्य इच्छा क्या होती है, इसे समझने के लिए रूसो द्वारा प्रतिपादित मानव इच्छा के विश्लेषण को समझना आवश्यक है। मनुष्य एक विवेकशील प्राणी है। किसी न किसी प्रकार के विचार या इच्छाएं उसके हृदय में सदा उठती रहती हैं। मनुष्य की ये इच्छाएं सामान्यतः दो प्रकार की होती है—प्रथम, यथार्थ तथा द्वितीय, आदर्श इच्छाएं।

यथार्थ इच्छा (Actual Will): रूसो के अनुसार मनुष्य की यथार्थ इच्छा स्वार्थ प्रधान होती है। वह मनुष्य की अविवेकपूर्ण संकीर्ण प्रवृत्ति का परिणाम होती है, स्वार्थ तथा व्यक्तिगत हित को दृष्टि में रखती है तथा सामाजिक हित का विचार नहीं करती। उदाहरणार्थ, खाद्य पदार्थों में मिलावट करने वाले व्यापारी का लक्ष्य केवल लाभ कमाने का विचार होता है, वह इससे समाज को पहुंचने वाली हानि को कभी नहीं देखता।

आदर्श इच्छा (Real Will): मनुष्य की आदर्श इच्छा उसके व्यापक दृष्टिकोण का परिणाम होती है। यह सामाजिक हित से संबंधित होने के कारण अस्थाई और क्षणिक नहीं होती। यह मनुष्य की बुद्धि के चिन्तन का परिणाम और वैयक्तिक स्वार्थ से रहित होने के कारण व्यक्ति की वास्तविक इच्छा होती है। संक्षेप में, दूरदर्शिता, स्थायित्व, व्यक्ति व समाज के हित का सामंजस्य, पूर्णता व विवेकशीलता आदर्श इच्छा की विशेषताएं होती हैं।

सामान्य इच्छा(General Will)

समाज के विभिन्न व्यक्तियों की आदर्श इच्छा(Real Will) का सर्वयोग ही सामान्य इच्छा है। रूसो की मान्यता है कि सब नागरिकों की वह इच्छा जिसका उद्देश्य सामान्य हित हो, सामान्य इच्छा कहलाती है। यह सब व्यक्तियों में से आनी चाहिए तथा सब व्यक्तियों पर लागू होनी चाहिए।

सामान्य इच्छा की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। यह एक भाव है जो समझा जा सकता है, किन्तु व्यवहार में नहीं लाया जा सकता। किसी इच्छा को सामान्य इच्छा होने के लिए यह आवश्यक है कि वह सामान्य व्यक्तियों की इच्छा हो और उसका आधार सामान्य हित हो। अर्थात् सामान्य इच्छा के दो अंग हैं: प्रथम, सामान्य व्यक्तियों की इच्छा, और द्वितीय, सामान्य हित पर आधारित विवेकशील इच्छा।

सामान्य इच्छा का निर्माण

 प्रत्येक व्यक्ति में दोनों प्रकार की यथार्थ और आदर्श इच्छाएं होती हैं। समाज का प्रत्येक व्यक्ति हर सार्वजनिक प्रश्न पर अपने ढंग से विचार करता है, परन्तु यदि समाज सभ्य है और उसमें नागरिकता की भावना मौजूद है तो व्यक्तियों की इच्छाओं के स्वार्थपूर्ण तत्व एक दूसरे को नष्ट कर देते हैं और ऐसा हो जाने पर सामान्य इच्छा बन जाती है।

सामान्य इच्छा तीन दृष्टियों से सामान्य होनी चाहिए :
1. उत्पत्ति की दृष्टि से: इसमें सब नागरिकों की सहमति होनी चाहिए।

2. क्षेत्र की दृष्टि से: यह राज्य की समस्त जनता से सम्बन्धित होनी चाहिए।

3. ध्येय की दृष्टि से: यह समाज के हित के अनुकूल होनी चाहिए।

 

सामान्य इच्छा से संबंधित भ्रांतियां

सामान्य इच्छा और बहुमत: रूसो की सामान्य इच्छा बहुमत से भिन्न है। सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति में संख्या का कोई मूल्य नहीं है। वह किसी एक या कुछ व्यक्तियों की इच्छा भी हो सकती है। यदि समाज का एक बहुसंख्यक वर्ग अपने अनुचित निर्णयों को अल्पसंख्यक वर्ग पर थोपने का प्रयत्न करे तो उसके इस कार्य को समाज की सामान्य इच्छा का प्रतीक नहीं माना जा सकता।

सामान्य इच्छा और सर्वसम्मति: सामान्य इच्छा व सर्वसम्मति में अन्तर करते हुए रूसो ने लिखा है कि सामान्य इच्छा का लक्ष्य सार्वजनिक होता है जबकि सर्वसम्मति का लक्ष्य वैयक्तिक हित होता है। सर्वसम्मति व्यक्तियों के हितों से भी सम्बन्धित हो सकती है, पर सामान्य इच्छा अनिवार्यतः समस्त समाज के कल्याण से ही सम्बन्धित होती है।

सामान्य इच्छा और लोकमत: सामान्य इच्छा व लोकमत को भी एक नहीं समझना चाहिए। लोकमत का रूप कभी-कभी ऐसा भी हो सकता है जिसका सम्बन्ध समाज के हित से नहीं हो, पर सामान्य इच्छा सदा समाज के स्थायी हित का ही प्रतिनिधित्व करती है। समाचार पत्र, रेडियो आदि प्रचार साधनों द्वारा लोकमत को भ्रष्ट किया जा सकता है पर सामान्य इच्छा कभी विकृत नहीं होती।

 

सामान्य इच्छा सिद्धान्त की आलोचना

रूसो की सामान्य इच्छा का सिद्धान्त राजनीतिक दर्शन के सर्वाधिक विवादास्पद विषयों में से एक है। इस सिद्धान्त में कतिपय गम्भीर दोष हैं, जो इस प्रकार हैं:

1. सिद्धान्त की अस्पष्टता: सामान्य इच्छा का सिद्धान्त अस्पष्ट है। कभी रूसो कहता है कि सामान्य इच्छा और सभी की इच्छा में महान् अन्तर है; कहीं-कहीं पर उसने बहुमत की इच्छा को ही सामान्य मान लिया है। वेपर के अनुसार, “जब रूसो ही हमको सामान्य इच्छा का पता नहीं दे सका तो इस सिद्धान्त के प्रतिपादन का लाभ ही क्या हुआ? रूसो ने हमें एक ऐसे अन्धकार में छोड़ दिया है जहां हम सामान्य इच्छा के बारे में अच्छी तरह सोच भी नहीं सकते।”

2. सामान्य इच्छा अनैतिहासिक तथा काल्पनिक है: रूसो की सामान्य इच्छा’ उसकी काल्पनिक उड़ान है। इतिहास में इस प्रकार के समझौते का वर्णन नहीं मिलता जैसा रूसो ने चित्रित किया है।

3. यथार्थ और आदर्श इच्छा का काल्पनिक भेद: रूसो ने व्यक्ति की इच्छाओं को दो भागों में बांटा है- यथार्थ इच्छा तथा आदर्श इच्छा। वास्तव में इच्छाओं का इस प्रकार का विभाजन सम्भव नहीं। व्यक्ति की इच्छा ऐसी जटिल, पूर्ण, अविभाज्य समष्टि है कि उसका यह विभाजन संभव नहीं है।

4. सामान्य इच्छा का निरंकुशता को प्रोत्साहन: सामान्य इच्छा अधिनायकवाद तथा सर्वाधिकारवाद की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देती है। रूसो कहता है कि कानून इस सामान्य इच्छा के द्वारा ही बनाए जाते हैं। सामान्य इच्छा का कोई भी व्यक्ति उल्लंघन नहीं कर सकता। ऐसे में सामान्य इच्छा के नाम पर शासक द्वारा व्यक्ति पर मनमाने अत्याचार किए जा सकते हैं।

5. सार्वजनिक हित की परिभाषा करना कठिन: सामान्य इच्छा का विचार सार्वजनिक हित के विचार पर आधारित है, लेकिन सार्वजनिक हित की परिभाषा करना अत्यन्त कठिन है। एक निरंकुश तानाशाह भी अपने कार्यों को सार्वजनिक हित के नाम पर उचित ठहरा सकता है।

6. सामान्य इच्छा व्यक्ति की महत्ता को नष्ट कर देती है: सामान्य इच्छा से व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन होता है। सामान्य इच्छा के सामने व्यक्ति की इच्छा को कोई महत्व नहीं दिया गया है।

7. छोटे राज्यों के लिए ही उपयुक्त: आधुनिक युग के बड़े राज्यों में जिनमें बड़ी संख्या में विभिन्न प्रकार के जनसमूह निवास करते हैं, सामान्य हित पर आधारित इच्छा का पता लगाना कठिन ही नहीं असम्भव है। अतः यह बड़े राज्यों के लिए नहीं उपयुक्त है।

 

सामान्य इच्छा सिद्धान्त का महत्व

विभिन्न दोषों के उपरान्त भी रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धान्त राजनीतिक विचारों के क्षेत्र में असाधारण महत्व रखता है।

1. सामान्य इच्छा का विचार लोकतन्त्र का पोषक है क्योंकि यह प्रभुसत्ता का आधार जनस्वीकृति मानता है।

2. इसने यह प्रतिपादित किया कि राज्य का उद्देश्य किसी वर्ग विशेष का नहीं, किन्तु समूचे समाज का कल्याण और जनता का हित सम्पादन करना होना चाहिए। सामाजिक और सामान्य हित वैकल्पिक हितों की अपेक्षा अधिक श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट है।

3. रूसो के सिद्धान्त ने आदर्शवादी विचारधारा को प्रेरणा प्रदान की है क्योंकि इसने यह प्रतिपादित किया है कि शक्ति नहीं वरन् इच्छा राज्य का आधार है।

4. यह सिद्धान्त व्यक्ति तथा समाज में शरीर तथा उसके अंगों के समान सम्बन्ध स्थापित करके सामाजिक स्वरूप को सुदृढ़ करता है।

5. यह सिद्धान्त यह भी घोषित करता है कि राज्य कृत्रिम न होकर एक स्वाभाविक संस्था है। कोल के अनुसार ‘यह हमें सिखाता है कि राज्य मनुष्य की प्राकृतिक आवश्यकताओं और इच्छाओं पर आधारित है, इसलिए राज्य के प्रति हमें आज्ञाकारी होना चाहिए क्योंकि यह हमारे व्यक्तित्व का ही स्वाभाविक विस्तार है।’

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