संगठन का अर्थ, परिभाषा, संगठन के प्रकार

संगठन का अर्थ

सामान्य बोलचाल की भाषा में हम यह कह सकते हैं कि किसी कार्य को योजनाबद्ध ढंग से करना ही संगठन है। “कार्य आरम्भ करने से पहले उसको भली प्रकार से नियोजित कर लिया जाए, इसी को संगठन कहते हैं।” ‘संगठन’ में तीन तत्व निहित हैं- यह कार्य किसी निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है, इसमें सहयोग की भावना होती है तथा यह अनेक व्यक्तियों द्वारा किया जाता है। ‘संगठन’ का अर्थ है ‘व्यवस्था’ । व्यवस्था में विशेष रूप से व्यक्तियों तथा कार्यों को नियोजित किया जाता है। इस प्रकार संगठन का आशय अनेक व्यक्तियों की ऐसी स्थिति या ढांचे (Structure) से है जिसमें वे पहले से निश्चित लक्ष्य को पूर्ण करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करते हैं तथा एक-दूसरे को सहयोग देते हुए अपने निर्धारित कर्तव्य का पालन सुव्यवस्थित रूप से करते हैं।

 

परिभाषा

विभिन्न विद्वानों ने ‘संगठन’ की परिभाषा भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रस्तुत की है। समाजशास्त्री, मनोवैज्ञानिक, प्रबन्ध विचारक अपने-अपने दृष्टिकोण से संगठन के अर्थ को स्पष्ट करते हैं। किसी ने संगठन को ‘सम्प्रेषण व्यवस्था (A System of Communication) और कुछ ने इसे ‘समस्या निवारण का साधन’ (A Means of Solving Problems) माना है। संगठन की कुछ प्रमुख परिभाषाएं, जो विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गयी हैं निम्नलिखित हैं :

जॉन एम. गॉस के अनुसार, “संगठन का अर्थ है कर्मचारियों की व्यवस्था करना ताकि कार्यों और उत्तरदायित्वों के उचित विभाजन द्वारा निर्धारित उद्देश्य को सरलतापूर्वक पूरा किया जा सके।

जे. डी. मूने के अनुसार, “एक समान ध्येय की प्राप्ति के लिए बनने वाले प्रत्येक मानवीय समुदाय का ढांचा संगठन है। लूथर गुलिक के अनुसार, “संगठन सत्ता का औपचारिक ढांचा है जिसके द्वारा किसी निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कार्यों को विभाजित तथा निर्धारित किया जाता है और उनका समन्वय किया जाता है।

उर्विक के अनुसार, “संगठन का अर्थ है उन क्रियाओं का निर्धारण करना जो किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए आवश्यक हों और उनको ऐसे बगों में क्रमबद्ध करना जो कि विभिन्न व्यक्तियों को सौंपे जा सकें।

 

संगठन के प्रकार-

औपचारिक संगठन-

औपचारिक संगठन उन संगठनों में से है जिसमें प्रत्येक स्तर पर स्थिति, अधिकार एवं उत्तरदायित्व को स्पष्ट रूप से परिभाषित कर दिया जाता है। इस प्रकार के संगठनों में अधिकार उच्च स्तर से नीचे के स्तर की ओर प्रत्यायोजित होते हैं और पूरी संगठन संरचना संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न करती है।

एल. उर्विक ने अपनी पुस्तक ‘प्रशासन के तत्व’ में लिखा है, “संगठन से तात्पर्य है औपचारिक ढांचा, जिसकी रचना स्पष्ट सिद्धान्तों, नियमों तथा उप-नियमों के आधार पर विशेषज्ञों द्वारा की जाती है।” साइमन, स्मिथवर्ग तथा थॉम्पसन के अनुसार, “औपचारिक संगठन वह है जिसमें व्यवहार तथा सम्बन्धों को जान-बूझकर औचित्य के आधार पर संगठन के सदस्यों के लिए योजनाबद्ध कर दिया जाता है। एल. डी. ह्लाइट के शब्दों में, “यह सम्बन्धों की एक औपचारिक घोषित प्रतिकृति है जो शासन में विधि तथा उच्चतम प्रबन्ध द्वारा स्थापित की जाती है। यह किए जाने वाले कार्य की प्रकृति तथा मात्रा पर आधारित है। इसे चित्र (Chart) पा रेखाचित्र (Diagram) पर अंकित किया जा सकता है भले ही वह परिपूर्ण (Perfect) न हो।

औपचारिक संगठन इस ठोस तर्क पर आधारित होता है कि उचित ढंग से संगठन व्यक्तियों के सम्मिलित प्रयास असंगठित व्यक्तियों के व्यक्तिगत प्रयासों के योग से कहीं ज्यादा अच्छे परिणाम देंगे। इसमें उच्च तथा अधीनस्थ कर्मचारियों के सम्बन्धों का विवरण, लिखित आचार संहिताओं में कर दिया जाता है। इस दृष्टिकोण के प्रतिपादकों का यही निष्कर्ष है कि पहले आदर्श संगठन की आकृति या नमूना चना लिया जाए और फिर उसमें काम करने वाले लोगों का समायोजन इस प्रकार किया जाए कि वे संगठन में ठीक-ठीक बैठ सकें। इस दृष्टिकोण में मनुष्यों की अपेक्षा कार्यों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। ऐसा संगठन दक्षता पर अत्यधिक जोर देता है तथा वह निवैयक्तिक होता है।

लोक प्रशासन में औपचारिक संगठन अवधारणा के समर्थकों में मूने, लूथर गुलिक, उर्विक, फ्रेडरिक टेलर, हेनरी फेयोल एवं मैक्स वेबर के नाम उल्लेखनीय हैं।

 

औपचारिक संगठन की विशेषता 

एक औपचारिक संगठन के प्रमुख लक्षण/विशेषताएं निम्नांकित हो सकती हैं :

1. यह जान-बूझकर बनाया जाता है।

2. यह अधिकारों के प्रत्यायोजन के सिद्धान्त पर आधारित होता है।

3. यह पूर्णतः निवैयक्तिक होता है।

4. प्रत्येक स्तर पर स्थिति, अधिकार, उत्तरदायित्व को परिभाषित कर दिया जाता हैं एवं उनकी व्याख्या कर दी जाती है।

5. इसमें प्रायः संगठन चार्टों का निर्माण एवं प्रयोग किया जाता है।

6. इसमें आदेश की एकता (Unity of Command) का पालन किया जाता है।

7. इसे कानूनी मान्यता प्राप्त होती है। सरकारी स्तर पर कोई संगठन बनाने के लिए संसद या विधानसभा को कानून बनाना पड़ता है।

8. औपचारिक संगठन में प्रबन्ध के स्तर, अधिकारियों के पद और उनके कार्य-क्षेत्र म्पन्ट रूप से निर्धारित होते हैं, अतः इसमें कार्य का विभाजन बहुत आसानी से हो जाता है।

9. औपचारिक संगठन में डिजाइन और ढांचे को प्रधानता मिलती है।

10. औपचारिक संगठन अन्य संगठनों की अपेक्षा अधिक स्थायी होते हैं।

11. इस प्रकार के संगठन सुविचारित नियमों और व्यवस्थाओं के अनुसार कार्य करते हैं।

 

औपचारिक संगठन के लाभ

हेन्स तथा मैसी ने औपचारिक संगठन के निम्नांकित लाभों का उल्लेख किया है :

1. पारस्परिक मतभेद का अन्त अधिकारों और उत्तरदायित्वों की स्पष्ट व्याख्या होने के कारण आपसी मतभेदों के होने की सम्भावना नहीं के बराबर रहती है।

2. कार्यों का दोहराव न होना- पूर्णतया नियोजित होने के कारण इसमें किसी कार्य का दोहराव नहीं होता।

3. टालमटोल की सम्भावना का न होना- इस संगठन में टालमटोल की सम्भावना नहीं रहती है, क्योंकि इसमें अधिकारों व उत्तरदायित्वों की स्पष्ट व्याख्या कर दी जाती है।

4. उद्देश्यों को प्राप्त करना- सरल उद्देश्यों को प्राप्त करने या उन तक पहुंचने का यह अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं सरल साधन है।

5. एक व्यक्ति के अत्यधिक महत्व की समाप्ति- इसमें किसी एक ही व्यक्ति का कोई महत्व नहीं होता है। उनका अत्यधिक महत्त्व स्वतः समाप्त हो जाता है।

6. पक्षपात का न होना- इस संगठन में अवसरवादी और पक्षपात के अवसर समाप्त हो जाते हैं।

7. कार्यों के मापों का निर्धारण- इसमें कार्यों के सही मापों (Measurements) का निर्धारण अधिक अच्छी तरह से किया जा सकता है।

8. सुरक्षा की भावना को बल- कार्यों के स्पष्ट होने के कारण कर्मचारियों की सुरक्षा की भावना को बल मिलता है।

 

औपचारिक संगठन के दोष

संगठन के इस रूप की कई प्रकार से आलोचना की जाती है। आलोचकों का कहना है कि इसमें मानवीय तत्व की उपेक्षा की गयी है। किसी भी संगठन की वास्तविक प्रकृति उसके यान्त्रिक ढांचे के अध्ययन मात्र से नहीं समझी जा सकती। इसके लिए संगठन में कार्यरत लोगों की मनोवृत्ति, उनके व्यवहार का स्वरूप, उनका चरित्र, उनकी रुचियां, शैक्षणिक योग्यताएं, आदि की जानकारी प्राप्त करना नितान्त आवश्यक है। यदि ऐसा नहीं किया गया तो एण्डरसन एवं श्वैनिंग के शब्दों में, “संगठन का ढांचा और कुछ नहीं बल्कि केवल चित्र, रेखाचित्र, दैनिक कायों की परिपाटी, नियमावली तथा अनुदेशों अथवा शब्दों का समूह मात्र ही बनकर रह जाता है। रोथलिस बर्जर के शब्दों में, “बार-बार हम मानवीय समस्याओं को अमानवीय उपकरणों से अमानवीय आधार सामग्री के रूप में सुलझाने का प्रयत्न करते हैं। यह मेरी एक सामान्य सी धारणा है कि मानवीय समस्या को मानवीय समाधान की ही आवश्यकता है।”

औपचारिक संगठन के दोष निम्नलिखित हैं:

1. पहल शक्ति की समाप्ति औपचारिक संगठन का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह उपक्रम में पहल शक्ति को समाभ करता है।
2. अधिकारों का स्वहित में प्रयोग इस प्रकार के संगटन में अधिकारी कई बार अपने अधिकारों को अनावश्यक रूप से अपने ही हित में प्रयोग करते हैं।
3. अन्य संगठनों की मान्यताओं एवं भावनाओं की उपेक्षा इस प्रकार के संगठन में कार्यरत व्यक्ति सामाजिक संगठनों की मान्यताओं एवं भावनाओं पर किसी भी प्रकार का ध्यान नहीं देते हैं।
4. यन्त्रवत् होना इस प्रकार के संगठन यन्त्रवत् होते हैं जो कि मनुष्यों से ज्यादा अपने नियमों व नीतियों को महत्व प्रदान करते हैं।
5. अनौपचारिक सम्प्रेषण में बाधक औपचारिक संगठन अनौपचारिक सम्प्रेषण में बाधाएं उपस्थित करता है।
6. समन्वय की समस्या इस प्रकार के संगठन में समन्वय की समस्या भयंकर रूप से निरन्तर बनी रहती है।

 

अनौपचारिक संगठन-

अनौपचारिक संगठन से आशय उन व्यक्तिगत तथा सामाजिक सम्बन्धों से है जो व्यक्तियों के एक-दूसरे से एक साथ संगठित होने पर स्वतः उदय होते हैं। बर्नार्ड के अनुसार, “एक संगठन उस समय अनौपचारिक माना जाता है जबकि अन्तःव्यक्तिगत सम्बन्धों का समूह अनजाने में संयुक्त उद्देश्य के लिए स्थापित हो जाता है।”

संगठन की अनौपचारिक धारणा के प्रमुख प्रवर्तक एल्टन मेयो तथा उनके साथी हैं। इन लोगों ने वेस्टर्न इलेक्ट्रिक कम्पनी के हॉथोर्न संयन्त्र के सम्बन्ध में अग्रगामी प्रयोग किए। उन्होंने पाया कि जब कुछ व्यक्ति दीर्घकाल तक मिलकर काम करते हैं, तो उनमें भावात्मक तथा वैयक्तिक सम्बन्ध विकसित हो जाते हैं, जो औपचारिक सम्बन्धों से भिन्न होते हैं। इन सम्बन्धों को ही अनौपचारिक संगठन कहा जा सकता है।

अब यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि जहां भी लोग साथ मिलकर काम करते हैं, सामाजिक सम्बन्ध तथा समूहों का उदय होना निश्चित हो जाता है। यह सम्बन्ध लोगों का एक-दूसरे के साथ निरन्तर सम्पर्क होने के कारण स्वतः उत्पन्न होता है। ऐसे अनौपचारिक संगठन इस कारण भी निर्मित हो जाते हैं, क्योंकि व्यक्ति एक कठोर कार्यात्मक ढांचे में बांधा नहीं जा सकता जब कि वे उसे सामाजिक रूप से महत्वहीन प्राणियों के स्तर तक न पहुंचा दिया जाए।

यह अवधारणा मनुष्यों, मानवीय अभिप्रेरणाओं और अनौपचारिक सामूहिक कार्यपालन पर बहुत अधिक बल देती है, अतः इसे ‘संगठन की मानवतावादी अवधारणा’ (Humanistic Concept of Organization) भी कहते हैं। इस दृष्टिकोण का आग्रह है कि संगठन के रूप पर विचार करते समय सदैव यह ध्यान रखना चाहिए कि यह कोई जड़ वस्तु नहीं है बल्कि क्रियाशील एवं व्यक्तियों का समूह है।

 

अनौपचारिक संगठन की विशेषताएं या लक्षण

अनौपचारिक संगठन की निम्नलिखित विशेषताएं हैं :

1. यह स्वत्तः उत्पन्न होता है।

2. यह व्यक्तिगत आवश्यकताओं के लिए बनाया गया सामाजिक ढांचा है।

3. औपचारिक चार्ट में यह अपना स्थान नहीं रखता है।

4. प्रबन्धकीय पदानुक्रम (Managerial hierarchy) के अन्तर्गत सभी स्तरों पर इसे पाया जा सकता है।

5. यह रीति-रिवाजों, पारस्परिक सम्बन्धों तथा सामाजिक समूहों की आदतों से विकसित होता है।

6. यह संगठनों में मनुष्य की प्रमुख भूमिका मानता है और मनुष्य को मशीन के पुर्जे की तरह जड़ नहीं मानता। उनकी अपनी इच्छाएं, आकांक्षाएं, पसन्दगियां तथा नापसन्दगियां होती हैं।

7. इसकी मान्यता है कि सांगठनिक व्यवहार बड़ा जटिल होता है और इसमें मानव जीवों पर चारों ओर से दबाव डालने वाले प्रभाव पड़ सकते हैं। अतः संगठन की समस्याओं का विश्लेषण करने तथा उनका समाधान करने हेतु मनुष्य की बहुमुखी प्रकृति को समझना अति महत्वपूर्ण है।

अनौपचारिक संगठन औपचारिक संगठन के कार्यों को अधिक प्रभावित करता है। ऐसे संगठन के सदस्य प्रायः अपने प्रमाप निर्धारित कर लेते हैं। सामूहिक हितों की खोज करते हैं और विचार-विनिमय करते हैं। उनके अपने उद्देश्य होते हैं जो कि संस्था के लिए अनुकूल हो सकते हैं। इन संगठनों का आधारभूत उद्देश्य मानवीय आवश्यकताओं को सन्तुष्ट करना है जिनकी पूर्ति औपचारिक संगठन संरचना से नहीं की जा सकती है। औपचारिक संगठन सामाजिक संगठन की उन भावनाओं और मान्यताओं को ध्यान में नहीं रखते जिनके द्वारा व्यक्ति व व्यक्तियों के समूह अनौपचारिक रूप से एक-दूसरे से अन्तर्गठित होते हैं। अपने समुदायों में व्यक्ति एक साथ मिलकर व्यक्तिगत सम्बन्धों का निर्माण करते हैं और अनौपचारिक समूहों में संगठित हो जाते हैं, जिनमें प्रत्येक व्यक्ति को एक निश्चित स्थान तथा महत्वपूर्ण पद प्राप्त होता है। इस सम्बन्ध में यह ध्यान में रखना आवश्यक होगा कि सामाजिक जीवन में अनौपचारिक संगठन आधारभूत पक्ष है और उनका होना निश्चित है।

 

अनौपचारिक संगठन से लाभ

अनौपचारिक संगठन के लाभ संक्षेप में निम्नलिखित हैं:

1. यह औपचारिक संगठन के कमियों की पूर्ति करता है।

2. यह कार्य समूह को सन्तुष्टि एवं स्थायित्व प्रदान करता है।

3. यह सम्प्रेषण प्रक्रिया का उपयोगी मार्ग है।

4. इसकी उपस्थिति अधिशासियों को योजना बनाने तथा सतर्कतापूर्वक कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

5. यह प्रबन्धक की योग्यताओं में कमी को दूर करता है।

 

अनौपचारिक संगठन के दोष

अनौपचारिक संगठन के निम्नांकित दोष हैं।

1. यह प्रकृति से विद्रोही है।

2. यह एक समूह की मनोवैज्ञानिक भावना के अनुसार कार्य करता है।

3. यह उत्पादकता में अधिक वृद्धि करने हेतु प्रबंध के प्रयत्नों को अप्रभावकारी बनाता है।

4. इससे असत्य समाचारों का प्रसारण होता है।

 

अनौपचारिक संगठन के कार्य

बर्नार्ड अनौपचारिक संगठन के तीन कार्यों का उल्लेख करते हैं:

(i) सम्प्रेषण के साधन के रूप में, जो अधीनस्थों के मध्य आचरण के प्रमाप स्थापित करने में सहायक होता है।

(ii) औपचारिक संगठन में एकता बनाए रखने के रूप में, जिसके आधार पर लोगों में कार्य करने की तत्परता जाग्रत होती है तथा वस्तुपरक अधिकार में स्थायित्व आता है।

(iii) स्वयं के लिए आदर तथा स्वतन्त्र चैन की भावना को बनाए रखने में इससे सहायता मिलती है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *