नव लोक प्रबंधन

प्रबन्ध को लोक प्रशासन का प्राण कहा जाता है। प्रबन्ध प्रत्येक संगठन चाहे वह सार्वजनिक हो अथवा सरकारी संगठन हो, आवश्यक होता है। प्रशासन की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि जनकल्याण के कार्यों का प्रबन्ध सरकार किस निपुणता के साथ करती है। डॉ. एप्पलबी के शब्दों में, “जनकल्याण के लिए बनाए कार्यक्रमों का प्रबन्ध करना ही प्रशासन की आत्मा है।” लेकिन धीरे-धीरे प्रशासन की प्रबन्ध की अवधारणा में परिवर्तन आने लगा और प्रशासनिक जटिलताओं और आधुनिक समाज की समस्याओं के प्रबन्ध का महत्त्व इतना अधिक विस्तृत हो गया कि बहुत से विचारक आधुनिक समाज को ‘प्रबन्धकीय समाज’ की संज्ञा देने लगे हैं। 1970 के दशक के अन्त तक लोक प्रशासन में नवीन परिवर्तनों का दौर प्रारम्भ हो गया, क्योंकि प्रशासन में अनेक कठिनाइयाँ उत्पन्न हो गई हैं। इसी परिवर्तन की अवस्था को नव लोक प्रबन्ध कहा गया। इस परिवर्तन के समय इसमें निजीकरण, मितव्ययिता, विकल्प बाजार आदि का प्रयोग किया जाने लगा है। लोक प्रशासन की इस नवीन तकनीक को वर्ष 1980 से ‘सार्वजनिक प्रबन्ध’ का नाम दिया गया।

रिचर्ड कोमन के शब्दों में, “सार्वजनिक प्रबन्ध वर्तमान व्यापक प्रशासनिक परिवर्तनों की व्याख्या हेतु बनाया गया शब्द है। नवलोक प्रबन्ध एक जनप्रिय अवधारणा है। यह एक बड़ी और कार्य अकुशल सरकार समस्याओं का आकर्षक सुझाव है, इसी में इसकी सफलता का रहस्य छिपा हुआ है।”

नव लोक प्रबन्ध की रचना का श्रेय क्रिस्टोफर हुड को दिया गया है। इसके अतिरिक्त सार्वजनिक प्रबन्ध के अन्य विद्वान् पी. होगटे, सी. पोलेट, आर रोड्स, आर. एम. कैली, जी. औकोइन, एस. टेरी आदि हैं। नवीन लोक प्रबन्ध का उद्देश्य दक्षता, मितव्ययिता, प्रभावशीलता को प्राप्त करना है। नवीन लोक प्रशासन को NPM अर्थात् New Public Management Perspective नाम से भी जाना जाता है। इसका तात्पर्य प्रबन्धवाद को बढ़ावा देते हुए बाजारीकरण, निजीकरण को प्राथमिकता देते हुए नौकरशाही के आकार में कमी करना है।

 

नव लोक प्रबन्ध के उदय के कारण

नव लोक प्रबन्ध के उदय होने के अनेक कारण थे-

1. नवलोक प्रबन्ध का उदय उस परिस्थिति में हुआ, जब साम्यवाद का पतन हुआ और 12 राज्य स्वतन्त्र हो गए, जिससे आर्थिक प्रबन्ध की वास्तविकता सामने आ गई। नई आर्थिक परिस्थितियों ने सार्वजनिक क्षेत्र को अधिक प्रभावित किया और निजी प्रशासन को अधिक महत्त्व दिया जाने लगा, इसलिए परिस्थितियों ने नीति निर्धारकों को नए विकल्प की खोज के लिए विवश किया और इसी विवशता ने नवीन लोक प्रबन्ध को जन्म दिया।

2. नवीन लोक प्रबन्ध के उदय में वैश्वीकरण तथा उदारीकरण का भी विशेष योगदान रहा। उदारीकरण के परिणामस्वरूप नियमों तथा प्रतिबन्धों में ढील देने का कार्य प्रारम्भ किया। वैश्वीकरण की व्यवस्था ने पूरे विश्व की व्यवस्था के लिए नवीन मार्गों को खोल दिया। वैश्वीकरण विश्व के चारों ओर अर्थव्यवस्था का बढ़ता हुआ एकीकरण है। वैश्वीकरण के प्रभाव से प्रशासन के क्षेत्र में नवीन परिवर्तन की प्रेरणा मिली। वैश्वीकरण के कारण विश्व के विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था और नौकरशाही में पर्याप्त परिवर्तन करने की आवश्यकता अनुभव होने लगी है। इसी कारण से प्रशासन में परम्परागत प्रबन्ध के स्थान पर नवीन प्रबन्ध की आवश्यकता अनुभव की गई और नवीन लोक प्रबन्ध का उदय हुआ।

3. नवीन प्रबन्ध के क्षेत्र में नौकरशाही का भी विशेष योगदान रहा है। नौकरशाही के बदलते हुए स्वरूप के कारण प्रबन्ध के नए आयामों की आवश्यकता अनुभव की गई। इसी कारण प्रबन्ध में परिवर्तन को स्थान दिया गया। नौकरशाही मूलतः स्वार्थ से प्रेरित होती है, जनहित की भावना को उसमें स्थान नहीं दिया जाता है, इसलिए नौकरशाही की स्वार्थ भावना लक्ष्य से विमुख कर देती है, जबकि प्रबन्ध संगठन के लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक होता है। इसलिए नौकरशाही के व्यवहार को परिवर्तित करने के लिए प्रबन्ध में भी नए आयामों को स्थान दिया गया।

 

नव लोक प्रबन्ध की विशेषताएँ

नवलोक प्रबन्ध की अनेक विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं-

1. प्रबन्धवाद को प्राथमिकता नवीन लोक प्रशासन प्रबन्ध को महत्त्व देता है। उसी प्रकार, नवलोक प्रबन्ध प्रशासन को प्रबन्ध के साथ सम्बन्धित करता है, जिस प्रकार एक प्रबन्धक के द्वारा अपनी कम्पनी का प्रशासन चलाया जाता है, उसी प्रकार सरकार को भी प्रबन्धक की भूमिका का निर्वाह करते हुए अपनी भूमिका का निर्वाह करना चाहिए। प्रबन्ध का नवीन रूप मैक्स वेबर के परम्परागत नौकरशाही सिद्धान्त का विरोधी है। वर्तमान में नौकरशाही को उपयोगी स्वीकार न करते हुए, वह प्रबन्ध को अधिक महत्त्व प्रदान करते हैं। वर्तमान में नौकरशाही को व्यर्थ मानते हुए डेविड ओसबर्न और टेड गेबलर ने कहा है कि, “1990 के युग में यह निरन्तर बदलने वाले सूचना-ज्ञान, गहन समाज तथा अर्थव्यवस्था में सक्रिय नहीं हो पाती।”

2. नौकरशाही का परिवर्तित स्वरूप नवीन लोक प्रबन्ध नौकरशाही के स्वरूप को परिवर्तित कर देता है। वर्तमान प्रबन्ध में नौकरशाही का आकार ‘लघु आकार’ का हो गया है, क्योंकि नौकरशाही का विशाल आकार होने पर बजट का अधिकांश भाग नौकरशाहों पर ही व्यय हो जाया करता है और योजनाओं तथा अन्य महत्त्वपूर्ण कार्यों पर धन व्यय नहीं हो पाता है। निस्कानन का मत है कि बजट का अधिकांश निर्माण नौकरशाह करता है। वह अपने ब्यूरो के लिए बजट में अधिक-से-अधिक धन का आवण्टन चाहता है, जिससे वेतन और अन्य सुविधाएँ अधिक हों, लेकिन अनेक सुविधाओं के पश्चात् भी नौकरशाही, जनकल्याण के कार्यों को करने में समर्थ नहीं होती, इसलिए नवलोक प्रबन्ध के समर्थक नौकरशाही के आकार में कमी करना चाहते हैं और जन विकल्प सिद्धान्त का प्रयोग करना चाहते हैं, जिसके अनुसार नौकरशाह सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं का चयन करके श्रेष्ठ कार्य कर सकें।

3. विकेन्द्रीकरण को प्राथमिकता नवीन लोक प्रबन्ध में विकेन्द्रीकरण को प्राथमिकता प्रदान की जाती है। विकेन्द्रीकरण का प्रमुख उद्देश्य यह है कि शासन तन्त्र के विभिन्न स्तरों पर सत्ता को विभाजित कर दिया जाए, जिससे सेवाओं में वहीं के लोगों को प्राथमिकता प्रदान की जा सके। जब प्रत्येक कार्य को उसी स्तर पर पूर्ण किया जाएगा, तब उस कार्य में अधिक कुशलता व गुणवत्ता का समावेश हो सकेगा तथा प्रबन्ध करने में भी अधिक सुविधा हो सकेगी। नवलोक प्रबन्ध का मुख्य उद्देश्य यह है कि प्रबन्ध के माध्यम से कार्यों को अधिक श्रेष्ठता तथा कुशलता के साथ पूर्ण किया जा सके।

4. निजी क्षेत्र को प्राथमिकता नवीन लोक प्रबन्ध में सरकारी सेवाओं के स्थान पर निजी क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता दी जाती है, जिससे सरकार का ध्यान नीति-निर्माण के क्षेत्र में लगाया जा सके तथा निजी क्षेत्र में अधिक प्रतिस्पर्द्धा होने के कारण जनता को अधिक सेवा प्राप्त करने का अवसर भी प्राप्त होगा। ग्राहक निजी क्षेत्र में चयन के अधिक अवसर प्राप्त करके सेवा की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं। प्रबन्ध के क्षेत्र में यदि निजी प्रशासन के समान प्रबन्ध किया जाए, तो उससे संगठन में सुदृढ़ता आ जाएगी।

5. व्यावसायिक प्रबन्ध पर बल नवीन लोक प्रबन्ध का प्रेरणा तत्त्व व्यावसायिक प्रबन्ध पर बल देना भी है। इसका अर्थ यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र की सेवा का व्यवसायीकरण कर दिया जाए अर्थात् उन्हें व्यवसाय मानकर उनका प्रबन्ध किया जाए, जिससे उनमें उपयोगिता को बढ़ावा मिल सके।

6. नवीन सूचना प्रौद्योगिकी का प्रयोग करना नवीन लोक प्रबन्ध सूचना प्रौद्योगिकी को अधिक महत्त्व प्रदान करता है। आज विज्ञान का युग है तथा इस युग में हम नई वैज्ञानिक तकनीकी सहायता के द्वारा नए प्रकार से प्रशासनिक कार्यों को पूर्ण कर सकते हैं। आज नवीन सूचना प्रौद्योगिकी में साइबर स्पेस, ई-मेल, सेटेलाइट फोन, फैक्स, ई-फैक्स, मल्टीमीडिया, इण्टरनेशनल मैरीटाइम सैटेलाइट, ई-कॉमर्स, ई-गवर्नेन्स आदि का प्रयोग किया जाता है। इन नवीन सूचना साधनों के प्रयोग से नौकरशाही की संख्या में कमी आएगी, कागजी प्रशासन का अन्त हो जाएगा तथा सद्शासन का मार्ग प्रशस्त होगा। इसके माध्यम से प्रबन्ध के नए स्वरूप का उदय होगा तथा कार्य को शीघ्रता से पूर्ण करने में सहायता प्राप्त होगी

7. जवाबदेह प्रशासन की स्थापना नवीन लोक प्रबन्ध के अन्तर्गत प्रशासक वर्ग को जवाबदेह बनाया गया है। सरकारी अधिकारी अपने को जनता के प्रति उत्तरदायी नहीं मानते हैं। प्रशासन के इस स्वरूप को परिवर्तित करते हुए सार्वजनिक सेवाओं को नियन्त्रित करने का कार्य किया गया। वर्तमान में प्रत्येक कार्यकर्ता को जनता के प्रति उत्तरदायी माना गया है।

8. नवीन सेवाओं की स्थापना नवीन लोक प्रबन्ध के द्वारा कुछ विशेष सेवाओं को प्राथमिकता प्रदान की गई है, जिससे जनता में सरकार के प्रति भावनाओं में परिवर्तन हो सके। सरकार के द्वारा कुछ विशेष प्रबन्ध जनता के हित में किए जा रहे हैं; जैसे-बीमारी, बेकारी, वृद्धावस्था, अपंगता, अक्षमता या प्राकृतिक प्रकोप की स्थिति में प्रबन्धन के नवीन आयाम स्थापित किए गए हैं।

9. निम्न इकाइयों को समर्थन देना नवीन लोक प्रबन्ध में राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर छोटी-छोटी इकाइयों में कार्यों को विभाजित करके सेवा देने का प्रयास किया गया है, जिससे जनता की सहभागिता में वृद्धि हो सके। नवीन लोक प्रबन्ध सार्वजनिक क्षेत्र में कुशलता तथा मितव्ययिता लाने के लिए अनुबन्ध व्यवस्था के प्रयोग के लिए प्रेरित करता है। इसमें प्रबन्ध के नवीन सिद्धान्तों का प्रयोग करते हुए सेवाओं की लागत में कमी लाने का कार्य किया जाता है। इसमें लक्ष्य का स्तर निर्धारित करते हुए उन्हें सार्वजनिक सेवाओं से सम्बन्धित किया जाता हैं।

10. परिणाम को महत्त्व देना नवीन लोक प्रबन्ध में प्रक्रिया को अधिक महत्त्व प्रदान नहीं किया गया है। इसके स्थान पर परिणाम को अधिक महत्त्व दिया गया, क्योंकि प्रबन्ध के द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र में किस प्रक्रिया को अपनाया गया है यह बात महत्त्वपूर्ण नहीं है, बल्कि महत्त्व यह है कि प्रक्रिया द्वारा क्या परिणाम प्राप्त हुआ है, जिससे उत्तम प्रशासन की स्थापना हो सके।

 

नवीन लोक प्रबन्ध का महत्त्व

नवीन लोक प्रबन्ध का महत्त्व दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। नवीन लोक प्रबन्ध एक प्रबन्धकीय उद्गम है, जो लोक प्रशासन के लिए नवीन है। यह परिणामोन्मुखी तथा लक्ष्योन्मुखी व्यवस्था के रूप में जानी जाती है। इसके माध्यम से सार्वजनिक क्षेत्र में निजी क्षेत्र की तकनीक को अपनाकर व्यापारीकरण का समर्थन किया गया है। यह व्यवस्था नई व्यवस्था का प्रतिपादन करते हुए नौकरशाही के आकार तथा राज्य के कार्यक्षेत्र को सीमित करने और बाजार अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के पक्ष में है। नवीन लोक प्रबन्ध नई तकनीकी प्रयोग के माध्यम से सदृशासन की स्थापना करता है, जो वर्तमान की अत्यधिक आवश्यकता है। नवीन सूचना प्रौद्योगिकी के माध्यम से नौकरशाही की संख्या और उसके सोपानों में कमी आने से एक श्रेष्ठ शासन की स्थापना करने में सहायता प्राप्त होगी।

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