अरस्तु की क्रांति का सिद्धांत

 

 

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  • क्रांति का अर्थ ,
  • क्रांतियों के प्रकार,
  • क्रांतियों के उद्देश्य,
  • क्रांति के कारण,
  • क्रांतियों को रोकने के उपाय,
  • आलोचनाएं,

 

क्रांति का अर्थ 

अरस्तु की क्रांति संबंधी धारणा तथा हमारी आज की क्रांति संबंधित धारणा में महान अंतर है। किसी राज्य में जनता अथवा जनता के किसी भाग द्वारा सशस्त्र विद्रोह का नाम ही क्रांति नहीं है। अरस्तु के अनुसार क्रांति का अर्थ है संविधान में परिवर्तन।

संविधान में होने वाला छोटा बड़ा परिवर्तन, संविधान में किसी प्रकार का संशोधन होना, जनतंत्र का उग्ऊ या उदार रूप धारण करना, जनतंत्र द्वारा धनिकतंत्र का या धनिक तंत्र द्वारा जनतंत्र का विनाश किया जाना, सरकार में किसी प्रकार का परिवर्तन हुए बिना एक अत्याचारी शासक का दूसरे को हटाकर अपनी सत्ता स्थापित करना आदि इन सब बातों को अरस्तु क्रांति मानता है।

संविधान में पूर्ण परिवर्तन के फलस्वरूप राज्य का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक स्वरूप पूर्ण रूप से बदल जाता है, इसे हम पूर्ण क्रांति कह सकते हैं। यह आवश्यक नहीं कि इस प्रकार के परिवर्तन के लिए रक्त पात किया जाये। अरस्तु संविधान में परिवर्तन को ही क्रांति कहता है और संविधान में परिवर्तन चुनाव धोखे अथवा रक्तहीन उपायों द्वारा भी हो सकते हैं।

 

क्रांतियों के प्रकार

1) आंशिक अथवा पूर्ण क्रांति – जब संपूर्ण संविधान बदल दिया जाए तो उसे पूर्ण क्रांति और जब उसका कोई महत्वपूर्ण भाग बदल दिया जाता है तो उसे आंशिक क्रांति कहा जाता है। पूर्ण क्रांति में राज्य का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और प्रशासनिक स्वरूप पूर्णतः बदल जाता है।

2) रक्तपूर्ण अथवा रक्तहीन क्रांति – जब संविधान में परिवर्तन सशस्त्र विद्रोह के कारण व खून खराबे के कारण हो तो उसे रक्तपूर्ण क्रांति कहेंगे। जब संविधान या शासन का परिवर्तन बिना किसी रक्तपूर्ण उपद्रव के संभव होता है तो उसे अरस्तु ने रक्तहीन क्रांति कहा है।

3) व्यक्तिगत अथवा गैर व्यक्तिगत क्रांति – अरस्तु के अनुसार जब संविधान परिवर्तन किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति को पद से हटाने के लिए होता है तो उसे वैयक्तिक क्रांति कहते हैं। जब संविधान परिवर्तन का उद्देश्य गैर व्यक्तिगत होता है तो उसे अरस्तू ने अवैयक्तिक क्रांति की संज्ञा दी है।

4) वर्ग विशेष के विरुद्ध क्रांति – इसमें राज्य के निर्धन व्यक्ति राजतंत्र या धनिकतंत्र के विरुद्ध विद्रोह करते हैं अथवा धनिक व्यक्ति राजतंत्र या जनतंत्र के विरुद्ध क्रांति करते हैं। यदि निर्धन व्यक्ति राजा या धनी व्यक्तियों के विरुद्ध विद्रोह कर के राज्य में जनतंत्र की स्थापन कर देते हैं तो उसे जनतंत्रीय क्रांति कहते हैं।

5) वाग्वीरों की क्रांति – जब किसी राज्य में कुछ करिश्माई नेता अथवा वाग्वीर लोग लुभावनकारी नारों अथवा शब्द चमत्कार द्वारा अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूर्ण करने के लिए राज्य में क्रांति कर दे तो उसे वाग्वीरों की क्रांति (Demagogic revolution) कहा जाता है।

 

क्रांतियों के उद्देश्य

अरस्तु के अनुसार कोई भी क्रांति निम्नलिखित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए की जाती है –

1) प्रचलित संविधान के स्थान पर अन्य संविधान की स्थापना, जैसे राजतंत्र को हटाकर कुलीन तंत्र की स्थापना करना।

2) प्रचलित संविधान में ही शासक वर्ग के व्यक्तियों को बदल देना, जैसे पुराने राज्य के स्थान पर नए राज्य की नियुक्ति करना।

3) प्रचलित संविधान में गुणात्मक परिवर्तन करना, जैसे लोकतंत्र को उदारवादी लोकतंत्र बनाना।

4) प्रचलित संविधान के रहते हुए ही किसी नए पद की स्थापना करना या पुराने पद को समाप्त करना।

 

क्रांति के कारण

अरस्तु ने क्रांति के कारणों को तीन भागों में विभक्त किया है-

क) सामान्य कारण
ख) विशिष्ट कारण
ग) विशिष्ट शासन प्रणाली में क्रांति के विशिष्ट कारण।

क) क्रांति के सामान्य कारण

1) सामाजिक असमानता – अरस्तु के अनुसार क्रांति का मुख्य कारण समानता और न्याय की इच्छा है। जब सामाजिक असमानता पैदा होती है तो साथ में ही क्रांति या विद्रोह की ज्वाला भी सुलगने लगती है। अरस्तु के अनुसार “विद्रोह या क्रांति का कारण सदैव असमानता में पाया जाता है।” अस्तु का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के समान बनना चाहता है। आम व्यक्ति भी विशेष अधिकारों, शक्तियों और अवसरों को प्राप्त करना चाहता है। बहुसंख्यक वर्ग संपन्न अल्पसंख्यक वर्ग से घृणा करने लगता है। ऐसे में क्रांति का वातावरण अल्पसंख्यक वर्ग से ग्रहण करने लगता है। ऐसे में क्रांति का वातावरण तैयार हो जाता है। उस राज्य में क्रांतियां बार-बार होती है जिसमें असमानता की मात्रा ज्यादा होती है।

2) अरस्तु के अनुसार लाभ तथा सम्मान के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए भी क्रांति या विद्रोह होता है। कई बार असम्मान या हानि से बचने के लिए भी विद्रोह होता है।

3) कई बार भय की भावना भी क्रांति को जन्म देती है।

4) राज्य के किसी अंग का आसमानुपाती विस्तार भी क्रांति को जन्म देता है।

5) कई बार व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता की भावना के कारण भी क्रांति या विद्रोह करते हैं।

ख) क्रांतियों के विशेष कारण

1) शासकों की लालच – जब शासक जनता के हितों की अनदेखी करके संविधान का उल्लंघन करते हैं तो ऐसी स्थिति में राज्य का अस्तित्व व जनता का जीवन दोनों खतरे में पड़ जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप जनता ऐसे शासक के विरुद्ध विद्रोह कर देती है।

2) शासन सत्ता का दुरुपयोग – जब शासक वर्ग भ्रष्ट हो जाए, इसमें रिश्वत का बोलबाला हो तथा भाई भतीजावाद उग्र रूप धारण कर ले तब भी क्रांति हो सकती है।

3) अयोग्य व्यक्ति का शासन – जब शासक अयोग्य हो और शासन की भागीदारी में योग्य लोगों को स्थान न मिले तो क्रांति की भूमिका बनती है।

4) मध्यमवर्ग का अभाव – अरस्तु ने मध्यम वर्ग को राज्य की सुरक्षा व शांति के लिए आवश्यक माना है। जिस राज्य में यह वर्ग नहीं होता वहां पर अमीर और गरीब के बीच का अंतर संघर्ष को जन्म देता है और विद्रोह का आधार बनता है।

5) आर्थिक असंतुलन – अरस्तु इस तथ्य पर बहुत जोर देता है। जिस समाज में अमीरी और गरीबी के बीच भारी खाई हो वहां क्रांति का होना स्वाभाविक है।

6) विदेशियों का बाहुल्य – यदि किसी राज्य में विदेशी बहुत बड़ी संख्या में आ जाएं तो उससे वहां के नागरिकों को चुनौती मिलती है और इस प्रकार दो संस्कृतियों की टकराहत क्रांति को जन्म देती है।

7) सम्मान की लालसा – यह सब में स्वाभाविक है, किंतु जब शासक किसी को अनुचित रुप से बिना योग्यता या कारण के सम्मानित या अपमानित करते हैं तो जनता नाराज होकर विद्रोह कर देती है।

8) भय की भावना – अरस्तु के अनुसार भय भी क्रांति को जन्म देता है। अपराधी व्यक्ति भय के कारण दंड से बचने के लिए क्रांति करते हैं या ऐसे व्यक्ति जिन्हें अन्याय की आशंका हो वह भी विद्रोह करते हैं। इस तरह अविश्वास से भय और भय से क्रांति का जन्म होता है।

9) घृणा – धनिकतंत्र में जब धनिक शासक वर्ग अधिकार वंचित गरीब जनता को तिरस्कारपूर्ण ढंग से देखता है तो दलित वर्ग उससे नाराज होकर उसके विरुद्ध विद्रोह कर देता है। जनतंत्र में भी धनी व्यक्ति राज्य में व्याप्त अव्यवस्था और अराजकता के कारण निर्धन वर्ग से घृणा करने लगते हैं तो क्रांति का सूत्रपात होता है।

10) जातीय भिन्नता – यदि किसी राज्य में आवश्यकता से अधिक जातियों के लोग रहते हैं तो उससे द्वेष, कलह और फूट के कारण राज्य में विद्रोह के आसार हो जाते हैं।

11) शासक वर्ग की असावधानी – क्रांति का एक कारण शासक वर्ग की असावधानी होता है। शासक वर्ग कभी-कभी अज्ञान तथा असावधानी के कारण राज द्रोहियों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर देता है। इससे किसी भी समय अवसर प्राप्त होने पर वह व्यक्ति राज्य का तख्ता पलट कर देते हैं।

12) भौगोलिक स्थिति – यदि राज्य नदियों घाटियों और पर्वतों से विभिन्न टुकड़ों में बटा हो तो उसे जनता का आपसी संपर्क टूट जाता है। राज्य का कोई भी हिस्सा किसी समस्या को लेकर क्रांति कर सकता है।

13) अल्प परिवर्तनों की उपेक्षा – अल्प परिवर्तनों की उपेक्षा भी कई बार क्रांति का कारण होता है। यह छोटी-छोटी परिवर्तन धीरे-धीरे बड़े परिवर्तन पैदा कर देते हैं, जैसे अंब्राकिया में मताधिकार की शर्तों में सामान्य परिवर्तन से शासन में क्रांति हो गई।

14) शक्ति का दुरुपयोग – जब शासक अत्याचारी होकर जनता व अपने राजनीतिक विरोधियों पर दमन चक्र चलाता है तो उनमें आक्रोश की भावना पैदा होती है। राजशक्ति के प्रति इस आक्रोश से क्रांति का बिगुल बज उठता है।

15) निर्वाचन संबंधी विवाद – निर्वाचन संबंधी षड्यंत्र भी क्रांति उत्पन्न करते हैं। हेराइया में चुनावों में बड़े षड्यंत्र होते थे और इनके कारण परिणाम पहले से ही निश्चित हो जाता था। इस दोष को दूर करने के लिए यहां पर्ची पद्धति को अपनाकर निर्वाचन पद्धति में क्रांति की गई।

16) विरोधी वर्गों के शक्ति का संतुलित होना – क्रांतियों का एक बड़ा कारण राज्य में परस्पर विरोधी वर्गों (निर्धन एवं धनी आदि) का शक्ति में संतुलित होना भी है। जहां एक पक्ष दूसरे पक्ष से अधिक प्रबल होता है तो निर्बल पक्ष प्रबल पक्ष के साथ लड़ाई मोल नहीं लेता है, किंतु जब दोनों पक्षों में शक्ति संतुलन हो तो दोनों को सफलता की संभावना होती है और विद्रोह करके सत्ता हस्तगत करने का प्रयत्न करते हैं।

ग) विशिष्ट शासन प्रणालियों में क्रांति के विशिष्ट कारण

1) प्रजातंत्र में क्रांति

1. प्रजातंत्र में क्रांति का मूल आधार जन आंदोलन है। जन आंदोलक व्यक्तिगत रूप से धनिक वर्ग पर अत्याचार करता है तो संघर्ष की स्थिति पैदा होती है।

2. जब धनिकों पर ज्यादा करो का भार डाल दिया जाता है तो तब भी क्रांति के आसार होते हैं।

3. जब जनआंदोलक सेनापति हों, तब भी क्रांति के आसार बनते हैं। एथेंस व मेंगरा की प्रजातंत्रीय सरकारें इसी प्रकार के आंदोलन के कारण तानाशाही में बदल गई थी।

4. प्रजातंत्र को अधिक उदारवादी बनाने के लिए भी क्रांति की जाती है। यूनान के नगर राज्यों में ऐसी क्रांतियां भी हुई थी।

2) धनिकतंत्र में क्रांति

1. जब जनता का अधिक शोषण होता है तो लोकनायक द्वारा क्रांति कर दी जाती है। यदि क्रांति सफल होती है तो जनता का शासन स्थापित हो जाता है।

2. व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा भी क्रांति का कारण बनती है। यह स्पर्धा धनी शासक वर्ग में ही पाई जाती है।

3. जब धनी व्यक्ति फिजूलखर्ची कहते हैं तो उससे भी क्रांति के आसार बनते हैं।

4. जब धनिकतंत्र में शासन सत्ता सीमित रहती है तो शासन के अधिकार से वंचित व्यक्ति विद्रोह कर सकते हैं।

3) कुलीनतंत्र में क्रांति

1. जब शासन की बागडोर कुछ व्यक्तियों के हाथ में आ जाए तो क्रांति होती है। शासन से वंचित व्यक्ति विद्रोह करते हैं।

2. जब महान पुरुषों का अनादर किया जाता है तो क्रांति होती है।

3. जब युद्ध के कारण अमीर गरीब का अंतर बढ़ जाता है तब भी क्रांति होती है।

4. जब कोई महत्वकांक्षी व्यक्ति संपूर्ण शासन को अपने हाथ में लेना चाहता हो तो क्रांति हो जाती है।

5. जब न्याय प्रणाली विकृत होती है तब भी क्रांति होती है।

4) राजतंत्र में क्रांति

1. जब राजा जनहित में कार्य न करें और जनता पर अन्याय करे तो क्रांति होती है।

2. जब साहसी व न्यायी व्यक्ति का अपमान किया जाता है तो क्रांति होती है।

3. तिरस्कार की भावना भी क्रांति को जन्म देती है।

4. षड्यंत्र का भय भी क्रांति को जन्म देता है।

5. जब राजवंश के सदस्यों में आपसी झगड़ा हो जाए तो क्रांति होती है।

6. जब राजा तानाशाह बन जाता है तो क्रांति होती है।

5) निरंकुशतंत्र में क्रांति

1. शासक परिवार के आपसी झगड़े भी क्रांति को जन्म देते हैं।

2. घृणा और तिरस्कार की भावना भी क्रांति को भड़काती है।

3. शासक के व्यक्तिगत स्वार्थ भी क्रांति को जन्म देते हैं।

4. योग्य व्यक्ति का अपमान भी क्रांति को जन्म देते हैं।

इस प्रकार अरस्तू ने विस्तारपूर्वक क्रांति के विभिन्न कारणों पर प्रकाश डाला है साथ में ही उसने क्रांति को रोकने के उपाय भी बताए हैं।

 

क्रांतियों को रोकने के उपाय

अरस्तु ने उन सभी कारणों को जानने का प्रयास किया है जो संविधान को नष्ट करते हैं। अरस्तु ने क्रांतियों को रोकने के लिए जो उपाय बताए हैं वस्तुतः उनके अतिरिक्त अन्य कोई उपचार नहीं हो सकता। मैक्सी ने लिखा है “क्रांतियों के विषैले तत्वों को रोकने के लिए आधुनिक राजनीतिक विज्ञान कहीं और विश्वसनीय उप आधारों को नहीं बता सकता।” अरस्तु ने क्रांतियों को रोकने के उपायों को दो भागों में बांटा है –

क) सामान्य उपाय

अरस्तु ने क्रांति को रोकने के समान्य उपाय निम्न प्रकार से बताए हैं –

1. संविधान के अनुरूप शिक्षा – संविधान को स्थाई बनाने के लिए यह आवश्यक है कि बच्चों तथा नागरिकों को संविधान के अनुरूप शिक्षा दी जाए। अरस्तु का कथन है कि यदि बच्चों को शिक्षण संस्थाओं में ही संविधान का महत्व समझा दिया जाए तो संविधान की रक्षा तथा सफलता हेतु खुद को आगे भी कर सकते हैं। वर्तमान समय में शासन प्रणाली के अनुरूप ही शिक्षा की व्यवस्था है।

2. अच्छा शासन – जिस राज्य की शासन व्यवस्था दूषित होती है वह शीघ्र ही पतन की ओर अग्रसर हो जाता है। प्रशासक तथा प्रशासनिक पदाधिकारी योग्य, ईमानदार, कर्मठ एवं न्यायी हो। घूसखोरी का नामोनिशान नहीं होना चाहिए। जिस राज्य में अच्छा शासन होता है वहां क्रांति की संभावना नहीं होती है।

3. शुद्ध आचरण – जिस शासन व्यवस्था में शासकों का आचरण छल कपट रहित होता है, वहां क्रांति के आसार नहीं होते। अतः शासक वर्ग को जनता को धोखे में नहीं डालना चाहिए।

4. कानून का पालन – सरकार के सभी अंगों के कार्यों व शक्तियों का वर्णन संविधान में होता है। इसमें नागरिकों के अधिकारों व कर्तव्यों का भी वर्णन रहता है। प्रत्येक नागरिक एवं शासक का कर्तव्य है कि वह संविधान के कानून का पालन करें। जहां पर कानून का शासन होता है वहां पर सभी सुख शांति से रहते हैं।

5. राजभक्त नागरिक – प्रत्येक राज्य में कुछ देशद्रोही होते हैं। वे संविधान व राज्य के प्रति निष्ठावान नहीं होते। स्थाई शासन प्रणाली के लिए राजभक्त नागरिकों का होना जरूरी है।

6. आंतरिक फूट नहीं – राज्य में नागरिकों का शासक वर्ग में आपसी दल बंदी नहीं होना चाहिए। राज्य में शांति बनाए रखने के लिए आपस में प्रेम एवं सद्भाव होना आवश्यक है।

7. सद्भावनापूर्ण संबंध – राज्य में शांति बनाए रखने के लिए शासक व शासितों में आपसी संबंध मधुर होनी चाहिए। योग्य व्यक्तियों को पूरा सम्मान मिलना चाहिए।

8. शक्तियों का केंद्रीकरण न हो – शक्ति शासक वर्ग को भ्रष्ट करती है। यदि सारी शक्ति एक ही व्यक्ति के हाथ में आ जाए तो वह निरंकुश और अत्याचारी बन सकता है। अतः राज्य में शांति बनाए रखने के लिए शक्ति का समान वितरण किया जाए तथा किसी व्यक्ति या वर्ग को शक्तिशाली नहीं होने दिया जाए।

9. न्याय – जिस राज्य में न्याय का अभाव होता है वहां जनता विद्रोह करती है। जन विद्रोह से बचने के लिए न्याय व्यवस्था मजबूत होना जरूरी है। न्याय पर आधारित शासन ही स्थाई होता है।

10. समानता – समाज में अमीर व गरीब का अंतर अधिक नहीं होना चाहिए। राजनीतिक क्षेत्र में समानता का सिद्धांत लागू करना चाहिए। विषमता ही क्रांति को जन्म देती है। अतः समाज में समानता के सिद्धांत का पालन करना चाहिए।

11. सरकारी कोष का दुरुपयोग न हो – शासक वर्ग को सरकारी धन का जनता की भलाई के लिए ही प्रयोग करना चाहिए। जिस शासन व्यवस्था में सरकारी धन का प्रयोग स्वार्थ सिद्धि के लिए किए जाता है वहां अक्सर विद्रोह फैलने का डर रहता है।

12. राजकीय सेवाएं – प्रशासन को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए उच्च अधिकारियों की सेवा अवधि कम होनी चाहिए तथा निम्न अधिकारियों की सेवा अवधि अधिक होनी चाहिए। इससे वे स्वेच्छाचारी बनने का शौक नहीं लेंगे और प्रशासन में स्थायित्व व निष्पक्षता पैदा होगी।

13. सर्वोच्च पदों की योग्यता – अरस्तु के अनुसार सर्वोच्च पदों पर नियुक्त होने वाले पदाधिकारियों में संविधान के प्रति भक्ति, प्रशासनिक क्षमता तथा गुणी व न्याय की योग्यता होनी चाहिए। अधिकारियों का चयन पद अनुरूप योग्यतानुसार किया जाना चाहिए।

ख) विशिष्ट सासन प्रणालियों में क्रांति रोकने के उपाय

1) प्रजातंत्र

1. शासन को जनता के स्वतंत्रता के अधिकार पर किसी प्रकार का आघात नहीं पहुंचाना चाहिए।

2. समानता के सिद्धांत द्वारा सभी नागरिकों को एकता के सूत्र में बांधने का प्रयास करना चाहिए।

3. प्रजातंत्र में बहुमत शासन व्यवस्था कायम रखी जाए।

4. धनिकों के प्रति कोई अन्याय नहीं होना चाहिए।

5. सेनाध्यक्ष शासन नहीं होना चाहिए।

6. जन आंदोलन का अंत किया जाए।

7. शासक को शक्ति और धन का पुजारी नहीं होना चाहिए।

यदि उपर्युक्त उपायों पर विचार किया जाए तो लोकतंत्र सुरक्षित रह सकता है।

2) धनिकतंत्र

1. राज्य में बाह्य या अंतरिक फूट या विवाद नहीं होना चाहिए।

2. गरीबों के प्रति उदार दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिए।

3. शासन को धन कमाने का साधन नहीं समझना चाहिए।

4. सरकारी कोष का सदुपयोग किया जाना चाहिए।

3) कुलीनतंत्र

1. शासक के जनता के साथ अच्छे संबंध होने चाहिए।

2. महान पुरुषों को पूरा सम्मान मिलना चाहिए।

4) राजतंत्र

1. राजा को संविधान के प्रति निष्ठावान होना चाहिए।

2. राजा को जनता के साथ सद्व्यवहार करना चाहिए।

5) निरंकुशतंत्र

1. शासक, शासक की तरह ही शासन करे। उसे जनहित की भावना का ख्याल रखने का बहाना करना चाहिए। उसे एक राजा का स्वांग रचना चाहिए।

2. उसका आचरण शुद्ध होना चाहिए।

3. उसे देवता का उपासक होना चाहिए।

4. उसे अपने जीवन की रक्षा का सदैव ध्यान रखना चाहिए।

5. उसे पक्षपातपूर्ण ढंग से जनता के साथ व्यवहार नही करना चाहिए।

6. उसे सार्वजनिक राजस्व का दुरुपयोग नहीं करना चाहिए।

 

आलोचनाएं

अरस्तु के क्रांति संबंधी विचारों के कुछ आलोचनाएं भी हुए हैं –

1. वह एक तरफ तो निरंकुश तंत्र को सबसे निकृष्ट शासन प्रणाली मानता है लेकिन दूसरी तरफ इसे स्थायित्व प्रदान करने के उपाय बताता है जो अनावश्यक और अवांछनीय प्रतीत होता है।

2. अरस्तु क्रांति को एक बुराई की नजर से देखता है, अच्छाई की नजर से नहीं। आलोचकों के अनुसार क्रांति द्वारा सुधार व वांछनीय परिवर्तन लाए जा सकते हैं और किसी भी व्यवस्था को उचित दिशा में स्थायित्व प्रदान किया जा सकता है।

3. अरस्तु ने क्रांति शब्द का प्रयोग केवल संविधान और शासन प्रणालियों में परिवर्तन के अर्थ में किया है। आलोचकों का मत है कि क्रांति शब्द इतना व्यापक है कि इसका प्रयोग किसी भी क्षेत्र में किया जा सकता है।

4.अरस्तू ने अपने विचारों से निरंकुश शासक के हाथ में कुछ ऐसे खतरनाक क्रूर और अमानुषिक युक्तियां दी हैं, जिनसे जनता के सारे अधिकार, सारी मान-मर्यादायें और संपत्ति लूटी जा सकती हैं।

उपयुक्त आलोचनाओं के बावजूद भी इन विचारों का अपना विशेष महत्व है। अरस्तु ने क्रांति के कारणों व उसे रोकने के उपायों की वास्तविक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक व्याख्या कर राजनीतिक दर्शन के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। अरस्तु द्वारा बताए गए क्रांति के कारण आधुनिक शासन प्रणालियों के लिए भी मार्गदर्शक का कार्य करते हैं। यदि शासकों द्वारा अरस्तु के बताए गए उपचारों का पालन किया जाए तो आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था में स्थायित्व का गुण पैदा किया जा सकता है।

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