जॉन लॉक का सामाजिक समझौता सिद्धान्त

 

                CONTENT:

  1. मानव स्वभाव की धारणा,
  2. प्राकृतिक अवस्था,
  3. सामाजिक समझौते का कारण,
  4. सामाजिक समझौता और राज्य की उत्पत्ति,
  5. लॉक के सामाजिक समझौते की विशेषताएं,
  6. लॉक के सामाजिक समझौते की आलोचना,

 

सामाजिक समझौता सिद्धान्त को वैज्ञानिक ढंग से प्रतिपादित करने वाले दार्शनिकों में हॉब्स और रूसो के साथ-साथ जॉन लॉक का नाम भी उल्लेखनीय है। लॉक के सामाजिक समझौते का सार है कि निरंकुश राजतन्त्र के स्थान पर वैधानिक राजतन्त्र की स्थापना और पार्लियामेंट की अन्तिम सत्ता को स्वीकार करना नितान्त न्यायसंगत था। लॉक के समझौता सम्बन्धी विचार हॉब्स के विचारों से मेल नहीं खाते। उसके समझौता सम्बन्धी विचारों की व्याख्या निम्न प्रकार से की जा सकती है-

 

 मानव स्वभाव की धारणा

हॉब्स की भांति लॉक ने भी मानव स्वभाव की व्याख्या की है, किन्तु हॉब्स ने मनुष्य में केवल पाशविक प्रवृत्तियों को देखा, जबकि लॉक उसके मानवीय गुणों पर बल देता है। लॉक के अनुसार मनुष्य की प्रमुख विशेषता बुद्धिमान तथा विचारवान प्राणी होना है। वह अपनी विवेक बुद्धि से एक नैतिक व्यवस्था की सत्ता स्वीकार करता है और इसके अनुसार कार्य करना अपना कर्तव्य समझता है। उसके अनुसार मनुष्य स्वभाव से ही एक ऐसा सामाजिक प्राणी है जो पारस्परिक सहयोग, प्रेम, दया और सद्भावना के आधार पर दूसरे व्यक्तियों के साथ सम्बन्ध रखते हुए अपना जीवन व्यतीत करता है।

हॉब्स और लॉक के मानव स्वभाव सम्बन्धी विचारों में बुनियादी अन्तर है। हॉब्स का मनुष्य कोरा जंगली पशु है, जबकि लॉक का मनुष्य एक नैतिक प्राणी है; हॉब्स का मनुष्य भौतिकवादी है जबकि लॉक का मनुष्य कर्तव्य की पुकार सुनता है। हॉब्स का मनुष्य घोर स्वार्थी है, जबकि लॉक का मनुष्य परोपकारी भी है। हॉब्स का मनुष्य झगड़ालू है, जबकि लॉक का मनुष्य शान्तिप्रिय है।

 

प्राकृतिक अवस्था

हॉब्स ने मनुष्य को घोर स्वार्थी बतलाया था तथा प्राकृतिक अवस्था को तदनुसार सतत् संघर्ष और युद्ध की दशा माना था, परन्तु लॉक ने मनुष्य को स्वभावतः परोपकारी, दयालु, सहयोगी व समाजप्रिय माना है तथा उसी के अनुसार प्राकृतिक अवस्था की कल्पना भी इस प्रकार की है, जिसमें मनुष्य पारस्परिक युद्ध की अवस्था में न रहकर पारस्परिक सहयोग की अवस्था में रहते हैं। लाॅक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था नियमविहीन नहीं थी और उसके अंतर्गत यह नियम प्रचलित था कि ‘तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा व्यवहार तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो।’

लॉक के मतानुसार प्राकृतिक अवस्था में तीन प्रकार के अधिकार प्राप्त थे-
1) जीवन का अधिकार (Right to Life),
2) 2) स्वतन्त्रता का अधिकार (Right to Liberty),
3) 3) सम्पत्ति का अधिकार (Right to Property),

 

सामाजिक समझौते का कारण

यद्यपि लॉक की प्राकृतिक अवस्था इस विवेक जनित प्राकृतिक नियम पर आधारित है कि ‘तुम दूसरों के प्रति वही बर्ताव करो, जिसकी तुम दूसरों से अपने प्रति आशा करते हो।’ यह प्राकृतिक अवस्था स्वर्ण युग की अवस्था है क्योंकि यह अवस्था पारस्परिक संघर्ष की अवस्था नहीं थी, इसमें शान्ति और विवेक का आधिक्य था। प्राकृतिक अवस्था के स्वर्णिम चित्रण के बावजूद लॉक के अनुसार उसमें तीन कठिनाइयां थीं-

1. प्राकृतिक अवस्था की एक कठिनाई यह है कि उसमें ऐसी कोई कानून नहीं था, जिसके द्वारा उचित-अनुचित का निर्णय हो सके।
2. दूसरी कठिनाई यह है कि प्राकृतिक नियम या कानूनों को लागू करने के लिए प्राकृतिक दशा में कोई साधन या संस्था नहीं थी।
3. तीसरी कठिनाई यह है कि इसमें सब व्यक्तियों को न्याय करने और दण्ड देने का अधिकार होता है, अर्थात् दण्ड देने वाली कोई निष्पक्ष संस्था नहीं थी।

प्राकृतिक अवस्था की उपरोक्त तीन असुविधाओं को दूर करने के उद्देश्य से मनुष्यों ने एक सामाजिक समझौते द्वारा राज्य का निर्माण किया। इस सम्बन्ध में यह स्मरणीय है कि लॉक के अनुसार राजसत्ता की स्थापना मनुष्यों के पारस्परिक भय से छुटकारा पाने के उद्देश्य से नहीं होती वरन् प्राकृतिक अवस्था में रहने की कुछ कठिनाइयों के निवारण के उद्देश्य से होती है।

 

सामाजिक समझौता और राज्य की उत्पत्ति

प्राकृतिक अवस्था की उपर्युक्त असुविधाओं को दूर करने के लिए लॉक के अनुसार मनुष्यों ने एक समझौता किया। यह समाज के सब मनुष्यों का सब मनुष्यों के साथ किया जाने वाला समझौता था, अत: इसे सामाजिक समझौता कहते हैं। लाॅक ने जिन दो समझौते की चर्चा की है, उनमें से पहले समझौते द्वारा नागरिक समाज की तथा दूसरे समझौते द्वारा सरकार की स्थापना होती है। अर्थात् पहला समझौता जनता के बीच हुआ था और दूसरा समझौता जनता तथा शासक के बीच हुआ। पहले समझौते द्वारा समाज को जो अधिकार व्यक्तियों ने सौंपे, वे समाज द्वारा (दूसरा समझौता होने पर) सरकार को प्रदान कर दिए जाते हैं। सरकारी समझौते में चूंकि सरकार भी एक पक्ष होती है, अतः उसके ऊपर समाज द्वारा कुछ शर्त लगा दी जाती है, जिनका पालन यदि सरकार नहीं करती तो उसे समाप्त कर नयी सरकार का निर्माण किया जा सकता है। इस प्रकार लॉक ने एक सीमित व उत्तरदायी सरकार की कल्पना की थी।

 

लॉक के सामाजिक समझौते की विशेषताएं

1) यह समझौता सभी व्यक्तियों की सहमति पर आधारित होता है। कोई व्यक्ति इस नवीन समाज में सहमति के बिना प्रविष्ट नहीं हो सकता। ‘सहमति ही दुनिया में प्रत्येक वैध सरकार का निर्माण करती है जो व्यक्ति सहमति प्रदान नहीं करते वे प्राकृतिक अवस्था में बने रहते हैं और समुदाय का उन पर उत्तरदायित्व नहीं रहता।

2. यह समझौता एक बार हो जाने के बाद कभी रद्द (Irrevocable) नहीं हो सकता है। अर्थात् एक बार समझौता हो जाने के बाद इसे कभी भंग नहीं किया जा सकता है। लॉक के अनुसार जिसने समझौते को स्वीकार कर लिया है, उसे प्राकृतिक दशा में लौटकर जाने की कभी स्वतन्त्रता नहीं है।

3. यह एक ऐसा समझौता है जिसे प्रत्येक पीढ़ी को मानना चाहिए, क्योंकि जन्म के समय कोई भी बालक किसी देश या सरकार के अधीन नहीं होता। लाॅक यह मानता है कि राज्य के प्रत्येक नागरिक के बच्चे सर्वथा स्वतन्त्र रूप में पैदा होते हैं, इन्हें इस बात की पूरी स्वाधीनता है कि वे उस राज्य में सम्मिलित होने या न होने की सहमति प्रदान करें और यदि वे ऐसा नहीं करते तो उस राज्य से बाहर जाने पर वे अपनी पैतृक सम्पत्ति के उत्तराधिकार से वंचित हो जायेंगे।

4. लॉक के सामाजिक समझौते में व्यक्ति अपने केवल कुछ ही अधिकारों का परित्याग करते हैं, अपने सभी अधिकारों का नहीं। ये अधिकार हैं-प्राकृतिक कानून की व्याख्या करने, उसे कार्य रूप देने तथा उल्लंघनकारी को दण्ड देने के अधिकार। वह अपना अधिकार किसी एक व्यक्ति को नहीं, समस्त जनसमुदाय को सौंपता है।

5. इस समझौते द्वारा प्राकृतिक अवस्था का अन्त होता है न कि प्राकृतिक कानून का। राज्य के अन्तर्गत भी मानव प्राकृतिक कानून के अधीन उसी प्रकार रहता है, जिस प्रकार कि वह प्राकृतिक अवस्था में रहता था। लॉक के शब्दों में, “प्राकृतिक कानून के बन्धन समाज में समाप्त नहीं हो जाते।

6. यह समझौता राज्य के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है। यह समझौता एक ट्रस्ट (न्यास) के निर्माण का पहला चरण है। ट्रस्ट या समाज का निर्माण करने के बाद सरकार (Government) का निर्माण होता है। इसीलिए वाहन का मत है कि लॉक ने स्पष्ट उल्लेख नहीं किया, फिर भी वह दो प्रकार के समझौत मानता है-पहला समझौता प्राकृतिक दशा को समाप्त करके उसके स्थान पर सभ्य नागरिक समाज (Civl Society) की स्थापना करता है। इसके बाद दूसरे समझौते द्वारा व्यक्ति राज्य का निर्माण करते हैं। जहां प्रथम समझौता व्यक्तियों में परस्पर होता है, वहां दूसरा समझौता नागरिक समुदाय और सरकार के बीच होता है।

 

इन्हें  भी पढ़ें : हाॅब्स का सामाजिक समझौता सिद्धांत

 

लॉक के सामाजिक समझौते की आलोचना

1) लॉक ने बार-बार मूल समझौता (Original Contract) शब्द का प्रयोग किया है, परन्तु उसने कहीं भी स्पष्ट नहीं किया है कि मूल समझौते से उसका तात्पर्य क्या है। इसीलिए वाहन तथा सेवाइन जैसे विद्वानों ने कहा है कि लॉक के अनुसार दो समझौते होते हैं-प्रथम अर्थात् मूल समझौते से प्राकृतिक अवस्था को समाप्त कर राज्य का निर्माण किया जाता है एवं दूसरे समझौते से सरकार की स्थापना की जाती है।

2) लॉक के समझौता सम्बन्धी विचार सुस्पष्ट एवं तर्कसंगत नहीं हैं। उसके समझौता सम्बन्धी विचारों से कुछ विचारकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि समझौते दो हुए, जबकि बार्कर जैसे विद्वानों का मत है कि लॉक के अनुसार सिर्फ एक समझौता होता है।

3) लॉक समझौते का आधार सहमति को मानता है, परन्तु इतिहास में ऐसे भी राज्यों का उल्लेख मिलता है जो बल व शक्ति के आधार पर बने और नष्ट हुए।

4) लॉक ने एक ओर समझौते को सर्वसम्मति से सम्पन्न कराया है, परंतु दूसरी ओर बहुमत के शासन सिद्धान्त का समर्थन करता है। अतः लॉक के विचारों में विरोधाभास पाया जाता है।

5) लॉक ने प्राकृतिक अवस्था में जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति के अधिकारों के अस्तित्व की बात कही है। राजनीतिक समाज के निर्माण से पूर्व अधिकारों का अस्तित्व मात्र काल्पनिक है।