मैकियावेली के राज्य संबंधी विचार

 

मैकियावेली के राज्य संबंधी विचार

राज्य की उत्पत्ति : यद्यपि मैकियावेली ने राज्य की उत्पत्ति पर स्पष्ट रूप से अपने विचार व्यक्त नहीं किये हैं परंतु फिर भी यत्र तत्र इस विषय में उसके कुछ विचार पढ़ने को मिलते हैं।

मैकियावेली राज्य की उत्पत्ति का कारण मनुष्य के आसुरी और स्वार्थी स्वभाव को मानता है। वह अरस्तु की तरह राज्य को एक प्राकृतिक संस्था नहीं मानता। बल्कि उसकी मान्यता है कि मनुष्य ने अपनी असुविधाओं को दूर करने के लिए राज्य की स्थापना की है। अतः वह एक मानवकृत और कृत्रिम संस्था है। इस तरह मैकियावेली हाॅब्स की भांति राज्य की उत्पत्ति में समझौता सिद्धांत का प्रतिपादन करता है।

राज्य की प्रकृति या स्वरूप को दर्शाते हुए मैकियावेली राज्य को अन्य सभी संगठनों से उच्च व श्रेष्ठ मानता है। समाज के अन्य सभी संगठन उसके अधीन और उसके प्रति उत्तरदायी हैं, किंतु राज्य किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं है क्योंकि राज्य ही एकमात्र ऐसा साधन है, जिसके माध्यम से मानव कल्याण के सर्वोच्च लक्ष्य प्राप्त किए जा सकते हैं। अतः व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने आप को राज्य की सेवा में समर्पित कर दे।

राज्य के विस्तार की आवश्यकता : राज्य के निरंतर विस्तृत होते रहने की आवश्यकता बताते हुए मैकियावेली कहता है कि मनुष्य का स्वभाव पारे की भांति होता है, वह निरंतर बढ़ते रहना चाहता है। उसी प्रकार राज-व्यवस्था भी है और राज्य को भी बढ़ते रहना चाहिए। जो राज्य इस सिद्धांत का पालन नहीं करता वह स्थिर नहीं रह सकता है। इस संबंध में वह रोमन साम्राज्य के पतन का उदाहरण देते हुए बताता है कि उसके पतन का एक कारण उसका सदैव एक समान बने रहना था, रोमन साम्राज्य के शासकों ने उसके विस्तार की चेष्टा नहीं की।
अतः प्रिंस व डिस्कोर्सेज में वह इस बात पर बल देता है कि राज्य के अधिकृत प्रदेश को निरंतर बढ़ाते रहने की आवश्यकता है। वस्तुतः मैकियावेली का इटली के एकीकरण का जो लक्ष्य था उसे दृष्टि में रखते हुए ही उसके द्वारा इस प्रकार के विचार व्यक्त किए गए हैं।

राज्यों का वर्गीकरण और विभिन्न शासन प्रणालियां : मैकियावेली ने अपनी पुस्तक प्रिंस में फ्रांस, स्पेन तथा इंग्लैंड के सुदृढ़ एवं शक्तिशाली राजतंत्रों की प्रशंसा की है और यह इच्छा व्यक्त की है कि इटली में भी सुदृढ़ राजतंत्र स्थापित हो, जिसके द्वारा सभी नैतिक बंधनों से ऊपर उठकर इटली की एकता स्थापित करने और उसे शक्तिशाली बनाने का कार्य किया जा सके। लेकिन उसका अभिप्राय यह नहीं है कि मैकियावेली राजतंत्र को ही सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था मानता था। उसने इटली के लिए राजतंत्र को आदर्श के कारण नहीं वरन् तत्कालीन परिस्थितियों के कारण अपनाने का पक्ष ग्रहण किया है। गणतंत्र की अपेक्षा राजतंत्र को ही इटली के लिए उपयुक्त मानने के उसने तीन कारण दिए हैं, यह कारण इस प्रकार हैं –
1. लोगों का भ्रष्ठ चरित्र,
2.  राज्यों में संपत्ति की असमानता,
3. इटली की तत्कालीन व्यवस्था,

वास्तव में वह राजतंत्र को सर्वश्रेष्ठ शासन व्यवस्था नहीं मानता, यह बात डिस्कोर्सेज में उसके द्वारा किये गये राज्यों के वर्गीकरण तथा उसके गुण दोषों के विवेचन से स्पष्ट हो जाती है। एथेंस और रोमन गणराज्य की प्रशंसा करते हुए मैकियावेली ने कहा कि एथेंस का गणराज्य सैकड़ों वर्षो तक उन्नति के चरम शिखर पर रहा और उससे भी अधिक रोमन साम्राज्य ने सम्राटों से मुक्त होकर अपना उत्थान किया। वस्तुतः राज्य को महान व्यक्ति का स्वार्थ नहीं अपितु सार्वजनिक कल्याण की भावना बनाती है और यह सार्वजनिक सुख केवल गणतंत्र में ही प्राप्त हो सकता है। गणतंत्र और राजतंत्र की तुलना करते हुए डिस्कोर्सेज में निम्नलिखित कारणों से गणतंत्र को अधिक उपयोगी बताया है-

1. गणतंत्र में शासन की बागडोर सामान्य जनता में होती है और सामान्य जनता एक व्यक्तिगत राजा की अपेक्षा अधिक समझदार होती है।
2. राज्य के पदाधिकारियों के चयन करने में जनता का निर्णय किसी एक राजा की अपेक्षा अधिक सही होता है।
3. राजतंत्र में राज्य की प्रकृति समय अनुकूल परिवर्तित नहीं होती पर जनतंत्र में राज्य का स्वरूप और प्रकृति आवश्यकता के अनुसार परिवर्तित होती रहती है।
4. राजा राज्य के निर्णय के लिए उत्तम है पर राज्य को कायम रखने के लिए गणतंत्र ही अधिक उपयुक्त होता है।
5. सामान्य जनता उतनी कृतघ्नी नहीं हो सकती जितना कि एक राजा हो सकता है।
शासनतंत्रों अथवा सरकारों का वर्गीकरण मैकियावेली ने इस उद्देश्य से किया है कि आदर्श शासन कायम किया जा सके। उसके लिए आदर्श शासन वही है जो पूर्णतया सफल हो और जिसकी सत्ता मजबूत हो। इस क्षेत्र में अरस्तु के पथ का अनुसरण करते हुए उसने सरकारों को उनके शुद्ध व विकृत रूप मानकर 6 भागों में विभक्त किया है। संख्या के आधार पर वह भी शासन का वर्गीकरण शुद्ध और विकृत रूपों में करता है –

शासन के शुद्ध रूप :
1. राजतंत्र (democracy)
2. कुलीनतंत्र (aristocracy)
3. संवैधानिक प्रजातंत्र (constitutional democracy)

शासन के विकृत रूप:
1. तानाशाही (tyranny)
2. धनिकतंत्र या वर्गतंत्र (Oligarchy)
3. प्रजातंत्र (democracy)

मैकियावेली ने यद्यपि पॉलीबियस और दूसरों के इस विचार से सहमति प्रकट की है कि मिश्रित सरकार सर्वश्रेष्ठ होती है क्योंकि उसमें प्रत्येक शासनतंत्र के अच्छे गुणों का समावेश होता है और समुचित शक्ति संतुलन तथा नियंत्रण बना रहता है, नेकिन उसने केवल दो प्रकार के सरकारों का ही विस्तार से वर्णन किया है। ये हैं – राजतंत्र तथा गणतंत्र। मैकियावेली मानता है कि राजतंत्र या गणतंत्र इसमें से कोई भी शासन व्यवस्था सभी परिस्थितियों के लिए ठीक नहीं है। वह आदर्श शासन व्यवस्था गणतंत्र को मानता है और कहता है कि सामान्य स्थिति में राजा मूर्ख होते हैं, जबकि लोगों में निर्णय लेने और न्याय करने की क्षमता अधिक होती है, किंतु चूंकि मानव स्वभाव के कारण सभी परिस्थितियों में गणतंत्र को अपनाना संभव नहीं है, इसलिए वह राजतंत्र की ओर झुक जाता है।

संक्षेप में, सामान्य परिस्थितियों में उसका झुकाव गणतंत्र की ओर है, परंतु तत्कालीन इटली में विद्यमान अव्यवस्था जैसी स्थिति या संकट काल के लिए वह राजतंत्र को ही उपयुक्त समझता है।

संप्रभुता संबंधी विचार : मैकियावेली ने स्पष्ट रूप से संप्रभुता शब्द का कहीं भी प्रयोग नहीं किया है, किंतु उसने राजा की शक्तियों के संबंध में जो कुछ लिखा है, उसमें हमें संप्रभुता का आभास अवश्य होता है। वह शासक की आंतरिक इच्छा तथा विजेता की भावना को अविभाज्य मानता है। उसके अनुसार शासक किसी भी आंतरिक अथवा बाहरी शक्ति के प्रति उत्तरदायी नहीं होता और न वह किसी भी प्रकार के कर्तव्य अनुबंध (संधि) से प्रभावित होता है। उसे किसी भी प्रकार की आंतरिक या बाहरी विधियां मानने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। मैकियावेली स्वयं परिवर्तनवादी था और इसलिए उसने स्थायी तथा अखंड संप्रभुता की बात नहीं की है। वह संप्रभुता की अन्य विशेषताओं जैसे उसकी शाश्वतता और संवैधानिकता आदि के संबंध में कुछ नहीं लिखता, उसकी संप्रभुता एकात्मक, अलौकिक, धर्मनिरपेक्ष और स्वतंत्र चेतना से युक्त है। अंतरराष्ट्रीय मामलों में मैकियावेली सीमित संप्रभुता की आवश्यकता को स्वीकार करता है।