मौलिक अधिकार

{4} धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार

 भारत का संविधान भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित करता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 द्वारा सभी व्यक्तियों को, चाहे विदेशी हो या भारतीय, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। अधिकार के अंतर्गत निम्नलिखित स्वतंत्रता प्रदान की गई है –

(1) धार्मिक आचरण एवं विचार की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने अंतः करण की मान्यता के अनुसार किसी भी धर्म को अबाध रूप से मानने, उपासना करने और उसकी पूजा करने की पूर्ण स्वतंत्रता प्रदान की गई है।

(2) धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 26 के द्वारा सभी धर्मों के अनुयायियों को धार्मिक और दान देने वाली संस्थाओं की स्थापना और उनके संचालन , धार्मिक मामलों का प्रबंध, धार्मिक संस्थाओं द्वारा चल एवं अचल संपत्ति अर्जित करके राज्य की कानून के अनुसार प्रबंध करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।

(3) धार्मिक उन्नति हेतु कर देने अथवा न देने की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार प्रत्येक नागरिक किसी धर्म विशेष की उन्नति के लिए कर या चंदा देने के लिए स्वतंत्र हैं। किसी को कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

(4) व्यक्तिगत शिक्षण संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा देने की स्वतंत्रता अनुच्छेद 28 में कहा गया है कि राज्य के खर्चे से चलाई जा रही किसी भी शिक्षण संस्था में धार्मिक शिक्षा की व्यवस्था नहीं की जाएगी

उपर्युक्त प्रावधान उच्च शिक्षा संस्थान में लागू नहीं होता, जिसका प्रशासन राज्य करता है, लेकिन किसी ऐसे न्याय के अधीन स्थापित हुई है, जिसके अनुसार उस संस्था में धर्म की शिक्षा देना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त राज्य से मान्यता प्राप्त या राज्य निधी से सहायता प्राप्त शिक्षा संस्थान में होने वाली उपासना में किसी भी व्यक्ति को भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।

 

{5} संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार 

संविधान के अनुच्छेद 29 व 30 के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार प्रदान किए गए हैं-

(1) अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण संविधान के अनुच्छेद 29 के अनुसार नागरिकों को अपनी भाषा, लिपि या संस्कृति को सुरक्षित रखने का पूर्ण अधिकार है। अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि किसी भी नागरिक को धर्म व जाति और भाषा या इन में से किसी एक के आधार पर भी राजकीय सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थान में प्रवेश के संबंध में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा।

(2) अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार धर्म या भाषा पर आधारित सब अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और उनके प्रशासन का अधिकार है।

राज्य किसी शिक्षा संस्था को इस आधार पर आर्थिक सहायता देने से इनकार नहीं कर सकता, कि वह किसी धर्म या भाषा पर आधारित किसी अल्पसंख्यक वर्ग के प्रबंध के अधीन है।

राज्य शिक्षा संस्थाओं को सरकारी सहायता देने में इस प्रकार की शिक्षा संस्थाओं तथा अन्य शिक्षण संस्थाओं में कोई भेदभाव नहीं करेगा।

 

{6} संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)

 संविधान द्वारा जो मूल अधिकार प्रदान किए गए हैं, उनका उल्लंघन शासन द्वारा ना हो, इस हेतु संविधान द्वारा व्यक्ति को संवैधानिक उपचारों का भी अधिकार एक मूल अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है। अनुच्छेद 32 से 35 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्रदान किया गया है कि वह अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय की शरण ले सकता है। संवैधानिक उपचारों के अधिकार की व्यवस्था के महत्व को दृष्टि में रखते हुए डॉक्टर अंबेडकर ने कहा था “यह संविधान का हृदय तथा आत्मा है।”

(1) बंदी प्रत्यक्षीकरण लेख व्यक्तिगत स्वतंत्रता हेतु यह लेख सर्वाधिक महत्वपूर्ण है इसका अर्थ है शरीर उपस्थिति। इसलिए इस दौरान न्यायालय बंदी बनाए गए व्यक्ति की प्रार्थना पर अपने समक्ष उपस्थित करने तथा उसे बंदी बनाने का कारण बताये जाने का आदेश दे सकता है। यदि न्यायालय के विचार में संबंधित व्यक्ति को बंदी बनाए जाने के पर्याप्त कारण नहीं है या उसे कानून के विरुद्ध बंदी बनाया गया है, तो न्यायालय उस व्यक्ति को तुरंत रिहा करने का आदेश दे सकता है।

(2) परमादेश लेख इस लेख का अर्थ है हम आज्ञा देते हैं। जब कोई सरकारी विभाग या अधिकारी अपने सार्वजनिक कर्तव्य का पालन नहीं कर रहा है, जिसके परिणामस्वरुप किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन होता है, तो न्यायालय इस लेख द्वारा उस विभागीय अधिकारी को कर्तव्य पालन हेतु आदेश दे सकता है।

(3) प्रतिषेध लेख इस लेख का अर्थ है रोकना। यह लेख सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा अपने अधीनस्थ न्यायालय को जारी करते हुए आदेश दिया जाता है कि वह उन मुकदमों की सुनवाई ना करें जो उसके अधिकार क्षेत्र के बाहर हैं।

(4) उत्प्रेक्षण लेख इस लेख का अर्थ है पूर्णतया सूचित करना। इस आज्ञा पत्र द्वारा उच्चतम न्यायालय उच्च न्यायालय को और उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालय को किसी मुकदमे को सभी सूचनाओं के साथ उच्च न्यायालय में भेजने की सूचना देते हैं। प्रायः इसका उपयोग उस समय किया जाता है जब कोई मुकदमा उस न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर होता है और न्याय के प्राकृतिक सिद्धांतों का दुरुपयोग होने की संभावना होती है। इसके अतिरिक्त उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों से किसी मुकदमे के विषय में सूचनाएं भी इस लेख के आधार पर मांग सकते हैं।

(5) अधिकार पृच्छा लेख इस लेख का अर्थ है किस अधिकार से। जब कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक पद को अवैधानिक तरीके से जबरदस्ती प्राप्त कर लेता है, तो न्यायालय एक लेख द्वारा उसके विरुद्ध पद को खाली कर देने का आदेश जारी कर सकता है। इस आदेश द्वारा न्यायालय संबंधित व्यक्ति से यह पूछता है कि वह किस अधिकार से इस पद पर कार्य कर रहा? जब तक इन प्रश्न का संतोषजनक उत्तर संबंधित व्यक्ति द्वारा नहीं दिया जाता, तब तक वह उस पद पर कार्य नहीं कर सकता।

व्यक्तियों द्वारा साधारण परिस्थितियों की शरण लेकर अपने मौलिक अधिकार की रक्षा की जाती है, लेकिन युद्ध, बाहरी आक्रमण, सशस्त्र विद्रोह जैसी परिस्थितियों में, जबकि राष्ट्रपति द्वारा संकटकाल घोषणा कर दी गई हो, मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए कोई व्यक्ति किसी न्यायालय से प्रार्थना नहीं कर सकेगा। इस प्रकार संविधान द्वारा संकट काल में नागरिकों के मौलिक अधिकारों को स्थगित करने की व्यवस्था की गई है।

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