थाॅमस हाॅब्स की जीवन परिचय

थाॅमस हाॅब्स का जन्म 1588 ई. में इंग्लैंड के दक्षिणी तट पर स्थित मेम्सबरी( maimsbury) नामक नगर में हुआ था। उसके जन्म के पूर्व स्पेन की जनसेना (Armada) ने इंग्लैंड पर आक्रमण किया था। सभी लोग भयाक्रांत थे। कहा जाता है कि भय के वातावरण में जन्मा हाॅब्स जिंदगी भर ऐसे ही ग्रस्त रहा। स्वयं हाॅब्स ने भय को अपना ‘जुड़वा भाई’ कहा है।

हाॅब्स में पढ़ने लिखने और सोचने समझने की विलक्षण और असाधारण योग्यता शुरू से ही देखी जाने लगी थी। 14 साल की अवस्था में ही उसने यूरीपीडीज के मीडिया नाटक का, जो यूनानी भाषा में था लैटिन में अनुवाद किया। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में उसने गणित, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र आदि का गहन अध्ययन किया। उसने वहां से स्नातक की उपाधि ग्रहण की। इसके बाद वह केवेंडिश परिवार में विलियम केवेंडिश पढ़ाने लगा। इस सिलसिले में उसे साहित्य प्रेमियों से संपर्क हुआ तथा उसके ज्ञान में पर्याप्त वृद्धि हुई। उसने अपने शिष्य के साथ यूरोप यात्रा भी की। 16 से 28 ई. में हाॅब्स सर जरबस क्लिंटन के पुत्र का शिक्षक हो गया। हम देखते हैं कि अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद हाॅब्स ने शिक्षा को ही अपनी आजीविका और ज्ञानार्जन का साधन बनाया। उसने अपने नए शिष्य के साथ यूरोप की पुनः यात्रा की, जिसके दौरान उसने इटालियन वैज्ञानिक गैलीलियो तथा फ्रांस के दार्शनिक डेकार्ट के साथ संपर्क स्थापित किया।

इंग्लैंड में राजा और संसद में संघर्ष चल रहा था, क्योंकि हाॅब्स राजतंत्र का समर्थक था, अतः वह इंग्लैंड छोड़कर फ्रांस चला गया। यही वह लेवायाथन ग्रंथ का लेखन कार्य करने लगा। 1651 ईस्वी में यह ग्रंथ प्रकाशित हुआ, जिससे हाॅब्स की ख्याति सर्वोच्च शिखर पर पहुंच गई। उसने लेवायथन में कैथोलिक धर्म की कठोर आलोचना की थी। अतः बाध्य होकर वह अपने देश इंग्लैंड लौट गया। इंग्लैंड के सिंहासन पर चार्ल्स द्वितीय आसीन हुआ, जो का शिष्य रह चुका था। अतः हाॅब्स अपने शिष्य राजा के संरक्षण में रहने लगा। लेकिन उसकी नास्तिकता संबंधी बदनामी काफी जोर पकड़ रही थी। कुछ विशप हाॅब्स को जिंदा जला देने की बात करने लगे।

उसने राजा के परामर्श को मानकर अपना शेष जीवन शांति से बिताने का संकल्प लिया। उसने 84 वर्ष की आयु में अपनी आत्मकथा लिखी। फिर उसने प्राचीन यूनानी कभी होमर की इलियट और ओडिसी का अंग्रेजी में रूपांतरण किया। 1679 ई. में उसका स्वर्गवास हो गया।

थॉमस हॉब्स की रचनाएं : उसने अपने जीवन काल में सर्व प्रमुख पुस्तकों की रचना की : (1) De Corpore , इसमें प्रकृति का विवेचन है तथा यह बताया गया है कि जनता को संप्रभु का विरोध नहीं करना चाहिए। (2) de cive, इसमें संप्रभुता और उसकी आवश्यकता पर जोर दिया गया है। (3) लेवायाथन ( Leviathan ), जिसमें निरंकुश राजतंत्र का समर्थन किया गया है। (4) (elements of law), जिसमें विधि और उसके स्वरूपों का वर्णन किया गया है। हॉब्स कि उपरोक्त पुस्तकों में लेवायाथन को सर्वश्रेष्ठ स्थान प्रदान किया जाता है। इस ग्रंथ के चलते हॉब्स की ख्याति अमर हो गई है।

विचार पद्धति: हॉब्स ने अपनी रचनाओं में अपने पूर्व ग्रामीणों से सर्वथा भिन्न विचार पद्धति को ग्रहण किया। उसने मैकियावेली की अनुभवजन्य विधि अथवा बोंदा की ऐतिहासिक तुलनात्मक पद्धति का अनुसरण नहीं किया। वह अपने समय की वैज्ञानिक क्रांति से अत्यधिक प्रभावित था। भौतिक विज्ञान और गणित विज्ञान में उसकी विशेष रूचि रहती थी। तर्क द्वारा रेखा गणित की विधि और प्रमाणिकता प्रस्तुत करने की भी उसकी आदत थी। इस प्रकार हॉब्स ने भौतिक विज्ञान (physics), मनोविज्ञान(psychology) तथा ज्यामिति (geometry) की पद्धतियों को प्रतिष्ठित किया।

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